
भोपाल, 21 जुलाई (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में भगवान महादेव के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर को स्मरण कर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उन्हें अपनी स्तुति अर्पित की है। मुख्यमंत्री यादव ने लिखा,
“वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य, मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय, तस्मै व काराय नमः शिवाय।।
पवित्र श्रावण मास के द्वितीय सोमवार की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। देवाधिदेव महादेव जी आप सभी को सुख, समृद्धि और उत्तरोत्तर बढ़ोतरी प्रदान करें, मेरी करबद्ध प्रार्थना है।”
मध्य प्रदेश के मंदसौर स्थित यह पशुपती नाथ मंदिर साक्षी है भारत की ज्ञान परंपरा का। भगवान यहां स्वयं शिवना नदी से प्रकट हुए हैं। इसलिए यह अष्टमुखी भगवान पशुपतिनाथ मंदिर शिवना नदी के तट पर स्थित है। शिवना नदी के गर्भ से 19 जून, 1940 को यह अलौकिक मूर्ति बाहर निकाली गई थी। नवंबर 1961 में वर्तमान मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा स्वामी प्रत्यक्षानंदजी ने की थी। 8 मुख वाले शिव की प्रतिमा एक दुर्लभ प्रतिमा है और यह पहली सहस्राब्दी ई.पू. की है।
शैव धर्मशास्त्र के अनुसार 8 चेहरे भगवान शिव के विभिन्न पहलुओं का प्रतीक हैं: महादेव, पशुपति, भावम, इसाना, उग्र, शर्वा, आसनी और रुद्र। सभी चेहरों पर बड़ी-बड़ी आंखें हैं, माथे पर तीसरी आंख है। हर किसी ने हार, झुमके आदि जैसे आभूषण पहने हुए हैं। उनके बाल जटिल हैं जो शायद उस समय की अनूठी संस्कृति का प्रतीक हैं। पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर की सबसे खास विशेषताओं में से एक है इसका अष्टमुखी (आठ मुख वाला) शिव लिंग। मूर्ति 4.5 मीटर ऊंची है और इसका वजन 4.6 टन है। यह भगवान शिव की एक दुर्लभ और अनोखी मूर्ति है, जिसमें दो खंड हैं। लिंग के ऊपरी हिस्से में चार सिर हैं, जबकि निचले हिस्से में चार अन्य सिर खुदे हुए हैं। यहां पर जीवन की चारों अवस्थाओं के दर्शन होते हैं। पूर्व दिशा वाला मुख बाल्यावस्था को दर्शाता है, पश्चिम दिशा वाला मुख युवावस्था, उत्तर दिशा वाला मुख प्रौढ़ावस्था, दक्षिण दिशा वाला मुख किशोरावस्था का प्रतीक है। मंदिर में चारों तरफ दरवाजे हैं जिसका अर्थ है कि भगवान पशुपतिनाथ के दरवाजे हमेशा भक्तों के लिए खुले रहते हैं। वास्तव में देखा जाए तो यह अष्टमुखी पशुपतिनाथ मंदिर अपने दिव्य रूप के कारण भक्तों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है।
मंदसौर, जिसे प्राचीन काल में दशपुर के नाम से जाना जाता था, एक महत्वपूर्ण शहर था और इसका इतिहास मौर्य और गुप्त साम्राज्यों से जुड़ा है। ऐतिहासिक अभिलेखों और शिलालेखों से पता चलता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र रहा था। बाद में मालवा पर जब इस्लामिक आक्रमण हुए और मंदिरों को तोड़ा व लूटा जाने लगा, तब भक्तों ने मूर्ति सुरक्षित रखने के लिए शिवना नदी के गर्भ में इसे सुरक्षित किया था। ज्ञात हो कि 1305, 1401 और 1514 ई. में मुस्लिम आक्रांताओं ने भोजशाला के मंदिर और शिक्षा केंद्र को बार-बार तबाह किया। 1305 ई. में क्रूर और बर्बर मुस्लिम अत्याचारी अलाउद्दीन खिलजी ने पहली बार भोजशाला को नष्ट किया। हालांकि, इस्लामी आक्रमण की प्रक्रिया 1269 ई. में ही शुरू हो गई थी, जब कमाल मौला नाम का एक फकीर मालवा पहुंचा। कमाल मौला ने हिंदुओं को इस्लाम में लाने के लिए छल-कपट का सहारा लिया। उसने 36 साल तक मालवा क्षेत्र के बारे में विस्तृत जानकारी इकट्ठा की और उसे अलाउद्दीन खिलजी को दे दिया। युद्ध में मालवा के राजा महाकाल देव के वीरगति प्राप्त करने के बाद खिलजी ने कहर ढाना शुरू कर दिया।
खिलजी के बाद एक अन्य मुस्लिम आक्रमणकारी दिलावर खान ने 1401 ई. में यहां के विजय मंदिर (सूर्य मार्तंड मंदिर) को ध्वस्त कर दिया और सरस्वती मंदिर भोजशाला के एक हिस्से को दरगाह में बदलने का प्रयास किया। मुस्लिम आज उसी विजय मंदिर में नमाज अदा करते हैं। 1514 ई. में महमूद शाह ने भोजशाला को घेर लिया और इसे एक दरगाह में बदलने का प्रयास किया। उसने सरस्वती मंदिर के बाहर के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और ‘कमाल मौला दरगाह’ की स्थापना की। इसी आधार पर भोजशाला के दरगाह होने का दावा किया जा रहा है।
धार की तरह ही महाकालेश्वर मंदिर, जो कि भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, पर मध्यकाल में कई बार इस्लामिक आक्रमण हुए। इन आक्रमणों में मंदिर को क्षति पहुंचाई गई और शिवलिंग को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई। कुछ ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, 11वीं शताब्दी में गजनी के एक सेनापति ने मंदिर पर आक्रमण किया था, और 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने भी मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। तब पुजारियों ने शिवलिंग को कुंड में छिपाकर बचाया था। बाद में, मराठा शासकों ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और शिवलिंग को पुनः स्थापित किया। ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और सिंहस्थ कुंभ मेले की शुरुआत की थी। ऐसे ही संभवतया मंदसौर पशुपति नाथ मंदिर के साथ इतिहास में हुआ है, जब भगवान इस्लामिक आक्रमण के कारण से सुरक्षित रखने नदी के गर्भ में स्थापित किया गया।
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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
