RAJASTHAN

कैबिनेट मंत्री के आश्वासन पर शांत हुआ कथा वाचक अभयदास का अनशन, समर्थकों संग बायोसा मंदिर पहुंचे

कथा वाचक अभयदास

जालोर, 19 जुलाई (Udaipur Kiran) । प्रसिद्ध कथा वाचक अभयदास द्वारा शुक्रवार शाम से शुरू किया गया विरोध-प्रदर्शन व अनशन आखिरकार शनिवार शाम को समाप्त हो गया। लगभग 24 घंटे चले इस घटनाक्रम के दौरान अभयदास लगातार अपनी मांगों पर अडिग रहे और बीच-बीच में अपने रुख में बदलाव भी करते रहे। अंततः कैबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत के हस्तक्षेप के बाद वे अनशन तोड़ने और बायोसा मंदिर के दर्शन करने को राजी हुए।

शुक्रवार को अभयदास अपने समर्थकों के साथ बायोसा मंदिर जाना चाहते थे, लेकिन प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने के कारण पुलिस ने उन्हें रोक दिया। इस पर नाराज होकर वे कथा स्थल से हटकर एक मकान की छत पर बैठ गए और अनशन की घोषणा कर दी। बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में उनके समर्थक जमीन पर डटे रहे। रात को अभयदास ने मांग रखी कि जब तक मुख्यमंत्री स्वयं नहीं आते, वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। इस बीच सिरे मंदिर के साधुओं सहित कई धार्मिक प्रतिनिधियों ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, लेकिन अभयदास नहीं माने। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए अन्य जिलों से भी समर्थकों को बुलाने की अपील कर दी। शनिवार सुबह सिरे मंदिर के महंत गंगानाथ महाराज व अन्य संतों ने अभयदास से अनशन समाप्त करने की अपील की, साथ ही उन्हें व उनके समर्थकों को बायोसा मंदिर ले जाने की भी सहमति जताई, लेकिन अभयदास ने जिला कलेक्टर, एसपी और डीएसपी के निलंबन की शर्त रख दी। इससे निराश होकर साधु-संतों का प्रतिनिधिमंडल प्रेसवार्ता कर उनके आंदोलन से अलग हो गया।

शनिवार शाम को कैबिनेट मंत्री जोराराम कुमावत जालोर पहुंचे। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से बातचीत कर उन्हें अनशन तोड़ने को मनाया। मंत्री के हस्तक्षेप से मामला शांत हुआ और अभयदास ने उनके हाथों जल ग्रहण कर अनशन समाप्त किया। मंत्री के साथ अभयदास बायोसा मंदिर पहुंचे, उनके साथ चार बसों में उनके समर्थकों को भी दर्शन करवाए गए। दर्शन के बाद अभयदास ने कहा कि मंदिर परिसर और किले क्षेत्र में अवैध अतिक्रमण कर बनाई गई मजारों को लेकर शिकायत की जाएगी। प्रशासन की ओर से स्पष्ट किया गया है कि अतिक्रमण की शिकायत मिलने पर नियमानुसार जांच कर कार्रवाई की जाएगी। इस दौरान कलेक्टर प्रदीप के. गावंडे और पुलिस अधीक्षक ज्ञानचन्द्र यादव भी मौके पर उपस्थित रहे।

इस पूरे घटनाक्रम ने प्रशासन और धार्मिक संगठनों के बीच समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित किया है, साथ ही यह भी साफ किया है कि संवेदनशील मुद्दों को संवाद और संयम से ही सुलझाया जा सकता है।

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(Udaipur Kiran) / रोहित

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