
जगदलपुर, 18 जून (Udaipur Kiran) । बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर के छ: खंडों जिसमें श्री जगन्नाथ जी की बड़े गुड़ी, मलकानाथ , अमायत मंदिर , मरेठिया मंदिर , भरतदेव मंदिर और कालिकानाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र व सुभद्रा देवी के विग्रह के अलावा एक मूर्ति केवल जगन्नाथ भगवान के साथ कुल 22 विग्रहों का एक साथ एक ही मंदिर में अलग-अलग खंड़ो में स्थापित होना, पूजित होना तथा इन 22 विग्रहों की एक साथ तीन रथाें में रथारूढ़ कर रथयात्रा भारत के किसी भी क्षेत्र में ही नहीं हाेती है।
उल्लेखनीय है कि विश्व के किसी भी जगन्नाथ मंदिर में एक साथ 22 विग्रहों की पूजा एवं 22 विग्रहों की एक साथ रथयात्रा नहीं होती, जैसा कि जगदलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर में होता है। उक्त जानकारी आज बुधवार काे 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष वेदप्रकाश पांडे ने देते हुए बताया कि बस्तर गाेंचा 2025 में तय कार्यक्रम के अनुसार 27 जून काे श्रीजगन्नाथ स्वामी, बलभद्र व सुभद्रा के 22 विग्रहों की पूजा व तीन रथाें में रथारूढ़ कर रथयात्रा की अनाेखी परम्परा का निर्वहन रियासत कालीन परंपरानुसार संपन्न किया जायेगा।
22 विग्रहों का एक साथ एक ही मंदिर में स्थापित होने का है रोचक प्रसंग
360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के वरिष्ठ सदस्य विवेक पांडे ने बताया कि 22 प्रतिमाओं के एक ही मंदिर में पूजा होने के पीछे बड़ा ही रोचक प्रसंग सामने आता है, कि जब वर्ष 1408 में राजपरिवार के साथ जिन 360 घर आरण्यक ब्राह्मण परिवारों को लाकर बस्तर में बसाया गया, वे अपने साथ ओडि़सा से भगवान जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र व सुभद्रा देवी की मूर्तियां लेकर आए। भगवान के विग्रहों के साथ बस्तर अंचल में आकर बस गए और अपने आराध्य की पूजा-अर्चना करते रहे ।
बस्तर दशहरा से जुड़ा हुआ है सातवें खंड में स्थापित श्रीराम मंदिर
सातवें खंड में स्थापित भगवान श्रीराम मंदिर विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के साथ जुड़ा हुआ है, बस्तर गाेंचा एवं बस्तर दशहरा की शुरूआत बस्तर महाराजा पुरूषाेत्तम देव के द्वारा वर्ष 1408 में जगन्नाथपुरी की यात्रा में पंहुचने पर वहां से रथपति की उपाधि मिलना एवं भगवान जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र व सुभद्रा देवी के विग्रह के साथ रथारूढ़ हाेकर बस्तर की वापसी के बाद बस्तर में श्रीजगन्नाथ मंदिर की स्थापना कर जगन्नाथपुरी से लाये गये विग्रहाे काे स्थापित करने बाद से आज पर्यंत तक अनवरत जारी है। रियासतकालीन परंपरानुसार 75 दिवसिय बस्तर दशहरा के पर्व का सबसे बड़ा आकर्षण दुमंजिला विशालकाय रथ में मां दंतेश्वरी के छत्र काे रथारूढ़ कर रथ पपरिक्रमा से पहले मां दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी छत्र काे लेकर पैदल चलकर बस्तर की मूल देवी माता मावली के मंदिर पंहुचकर पूजा-विधान के बाद मां दंतेश्वरी का छत्र सातवें खंड में स्थापित भगवान श्रीराम मंदिर पंहुचते हैं, जहां पूजा-विधान के बाद ही श्रीजगन्नाथ मंदिर के पश्चिम द्वार से मां दंतेश्वरी का छत्र दुमंजिला विशालकाय रथ में रथारूढ़ करने की परंपरा का निर्वहन शाब्दियाें (617 वर्षाें)से अनवरत जारी है। मान्यता है कि मां दंतेश्वरी बस्तर दशहरा में रथ परिक्रमा से पहले बस्तर की मूल देवी माता मावली एवं भगवान विष्णु स्वरूप प्रभु श्रीजगन्नाथ-श्रीराम काे अपने साथ रथारूढ कर परिक्रमा के लिए निकलती हैं।
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(Udaipur Kiran) / राकेश पांडे
