West Bengal

अब बांग्लादेशी घुसपैठियों की गिरफ़्तारी पर ममता बनर्जी आंसू बहाएंगी, क्योंकि वे बांग्ला बोलते हैं – अमित मालवीय

अमित मालवीय

कोलकाता, 26 जुलाई (Udaipur Kiran) ।

हरियाणा में दस बांग्लादेशी घुसपैठियों की गिरफ़्तारी को लेकर राजनीति गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल प्रमुख और बंगाल के केंद्रीय पर्यवेक्षक अमित मालवीय ने इस मुद्दे पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को घेरा है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा है कि अब ममता बनर्जी इन घुसपैठियों के लिए “आंसू बहाना शुरू करेंगी” क्योंकि वे बंगाली बोलते हैं।

मालवीय ने शनिवार को सोशल मीडिया एक्स पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “ममता बनर्जी अब अवैध बांग्लादेशियों के लिए आंसू बहाएंगी, यह कहकर कि वे ‘बांग्ला बोलते हैं’ और इसलिए उन्हें उनके मेहमान के तौर पर देखा जाना चाहिए।” उन्होंने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी भाषा को एक राजनीतिक औजार की तरह इस्तेमाल कर रही हैं, ताकि अवैध गतिविधियों को जायज़ ठहराया जा सके।

अमित मालवीय ने कहा कि यह करुणा नहीं, बल्कि विकृति है। मालवीय ने दावा किया कि बंगाल की मुख्यमंत्री राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता कर रही हैं और यह सब कुछ महज़ वोट बैंक के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “जब तुष्टीकरण राष्ट्रीय हितों से ऊपर आ जाता है, तो देश को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।”

हाल के दिनों में ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक विमर्श को ‘बंगाल खतरे में’ से बदलकर ‘बंगाली खतरे में’ कर दिया है और भाजपा शासित राज्यों में बांग्ला बोलने वालों के उत्पीड़न का मुद्दा बार-बार उठाया है। इस हफ्ते की शुरुआत में उन्होंने घोषणा की थी कि इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस 27 जुलाई से पूरे राज्य में सप्ताहांत पर विरोध कार्यक्रम आयोजित करेगी। उन्होंने इसे एक नया ‘भाषा आंदोलन’ करार दिया था।

हालांकि, ममता की इस तुलना पर भी सवाल उठे हैं। भाषा आंदोलन का ऐतिहासिक संदर्भ पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से जुड़ा है, जहां बंगाली को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन हुआ था और आगे चलकर यही संघर्ष बांग्लादेश के निर्माण में परिणत हुआ।

भाजपा ने ममता बनर्जी पर आरोप लगाया है कि वह ‘भाषा आंदोलन’ की भावनाओं का दुरुपयोग कर रही हैं। पार्टी का कहना है कि मुख्यमंत्री असली भारतीय बांगालियों की चिंता नहीं कर रहीं, बल्कि बांग्लादेश से अवैध रूप से आए लोगों को बचाने के लिए भाषा का सहारा ले रही हैं।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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