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इजराइल में निवेश को लेकर नॉर्वे के चुनावी समर में हड़कंप

ओस्लो/अरेन्डल, 23 अगस्त (Udaipur Kiran) । नॉर्वे में 08 सितंबर को होने वाले आम चुनाव से पहले देश के सबसे बड़े संप्रभु निधि को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इजराइल में किए गए निवेश चुनावी मुद्दा बन गए हैं और इसने नॉर्वे की राजनीति में गर्मी बढ़ा दी है।

ताजा जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार, दक्षिणपंथी पार्टियां- कंजरवेटिव्स, प्रोग्रेस पार्टी, लिबरल्स और क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स- फिलहाल 85 सीटें जीतती दिख रही हैं, जो बहुमत के लिए आवश्यक संख्या से सिर्फ एक ज्यादा है।

विवाद तब गहराया जब वामपंथी सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी ने ऐलान किया कि वे लेबर पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन तभी करेंगे, जब यह फंड उन कंपनियों से निवेश वापस लेगा, जो इजराइल के गाजा में गैरकानूनी युद्ध में शामिल हैं। हालांकि लेबर पार्टी ने इस मांग को ठुकरा दिया, लेकिन चुनाव के बाद इस दबाव को टालना आसान नहीं होगा।

फंड के सीईओ निकोलाई टैंगन ने स्वीडिश डेली को दिए इंटरव्यू में कहा, यह मेरे करियर का सबसे बड़ा संकट है। यह भरोसे का सवाल है। उन्होंने पत्रकारों को दिए बयान में इस्तीफे की संभावना से इनकार करते हुए कहा कि उन्होंने संसद द्वारा तय जनादेश के मुताबिक ही काम किया है।

जानकारी के मुताबिक, 30 जून के बाद फंड ने 23 इजराइली कंपनियों से निवेश वापस लिया, जबकि इससे पहले सिर्फ दो कंपनियों से निवेश हटाया गया था। 14 अगस्त तक फंड के पास 38 इजराइली कंपनियों में 19 अरब नॉर्वेजियन क्रोन (लगभग 1.85 अरब डॉलर) का निवेश था। इसमें बैंकिंग, टेक्नोलॉजी, कंज्यूमर गुड्स और इंडस्ट्रियल सेक्टर शामिल हैं।

वित्त मंत्री जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने संकेत दिया है कि आगे भी और डिवेस्टमेंट (निवेश वापसी) हो सकता है। वहीं, समर्थकों का कहना है कि यह फंड इजराइल के कब्जे वाले फिलिस्तीनी इलाकों में कंपनियों के जरिए अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर रहा है। इसके विपरीत, विरोधियों का तर्क है कि किसी एक देश को अलग करना फंड की नैतिक नीति के खिलाफ है और इसमें समय लेने वाली औपचारिक प्रक्रिया जरूरी है।

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(Udaipur Kiran) / आकाश कुमार राय

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