
कोलकाता, 06 सितम्बर (Udaipur Kiran) । बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भूमिका पर केंद्रित पुस्तक बांग्लादेश मुक्तियुद्ध के नेपथ्य में नेताजी?’ का लोकार्पण शनिवार शाम किया गया। शनिवार को कोलकाता कॉलेज स्ट्रीट स्थित कॉफी हाउस में पुस्तक के प्रकाशक दीप प्रकाशन के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में विख्यात नेताजी गवेशक डॉ जयंत चौधरी की उपस्थिति में उनकी इस नई पुस्तक का विमोचन संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं वृत्तचित्र निर्माता मृन्मय बनर्जी, कोलकाता विश्वविद्यालय के प्राचार्य और आशुतोष म्यूजियम ऑफ इंडियन आर्ट के निदेशक डॉ. दीपक बोरपांडा, रासबिहारी बोस रिसर्च ब्यूरो के संस्थापक तपन भट्टाचार्य तथा दीप प्रकाशनी की सीईओ सुकन्या मंडल उपस्थित थे। इसके अलावा बांग्लादेश से डॉ. सुब्रत घोष और प्रो. प्रवीर कुमार सरकार (रजिस्ट्रार, ढाका विश्वविद्यालय) भी विशेष तौर पर शामिल हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत गीत “जगाओ पथिके, ओ जे घुमे अचेतन” से हुई। वक्ताओं ने अपने संबोधन में अनेक ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख किया और बताया कि जहां आज़ाद हिंद फौज और भारत की स्वतंत्रता में नेताजी की भूमिका सर्वविदित है, वहीं बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के संदर्भ में उनकी भूमिका पर कम ही प्रकाश डाला गया है।
पुस्तक के लेखक डॉ. जयंत चौधरी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और नेताजी से संबंधित कई गुप्त फाइलें नष्ट कर दी गई थीं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बांग्लादेश के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान ने कहा था—“नेताजी जीवित हैं, वरना बांग्लादेश स्वतंत्र नहीं होता।” उन्होंने कोलकाता आकर एक जनसभा में इस विषय में विस्तार से बोलने की बात भी कही थी, लेकिन कुछ सप्ताह बाद ब्रिगेड परेड ग्राउंड में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ दिए गए लंबे भाषण में मुजीब ने नेताजी का नाम तक नहीं लिया।
चौधरी ने अपने शोध के आधार पर कई प्रमाण प्रस्तुत करते हुए दिखाया कि बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के वास्तविक तथ्यों को कैसे परदे के पीछे रखा गया। पुस्तक में इन तमाम विवादित और ऐतिहासिक पहलुओं को विस्तार से सामने लाया गया है, जिसने नेताजी के प्रशंसकों और शोधकर्ताओं में नई जिज्ञासा पैदा कर दी है।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
