
मंदसौर 28 सितंबर (Udaipur Kiran News) । मध्य प्रदेश के मंदसौर शहर से करीब पांच किमी दूर स्थित नालछामाता मंदिर बेहद चमत्कारिक स्थान है। इसकी पुष्टि मंदिर से जुड़ी मान्यताओं और घटनाओं में होती है। इस स्थान पर मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई वह इतिहास न तो माता की सेवा करने वाले पुजारी को पता है और न ही भक्तों को। इतना जरूर बताते हैं कि जिस स्थान पर आज माता की प्रतिमा विराजित है, सैकड़ों वर्षों से प्रतिमा उसी स्थान पर है। यह अद्वितीय मंदिर है, जहां पर एक ही गादी पर माता रानी और भैरवनाथ विराजित है।
मान्यता है कि मां नालछा दिन में तीन बार रूप बदलती है। सुबह बाल्यावस्था, दोपहर में युवावस्था और रात्रि में वृद्धावस्था का रूप दिखता है। नालछामाता का वास्तविक नाम नाहरसिंह माता है। लेकिन जिस स्थान पर माता की प्रतिमा विराजित है वह उस गांव का नाम नालछा है। इसी के चलते धीरे-धीरे नाम नालछा माता पड़ गया। बताया जाता है कि ग्राम नालछा महाराजा दशरथ की अयोध्या रियासत का अंतिम छौर था। यहां पर हजारों वर्ष पुराने इस नालछामाता मंदिर की ख्याति तीन दशकों से बड़ी है। शहर ही नहीं अपितु जिले व प्रदेश के विभिन्न अंचलों से भी भक्त यहां माता रानी के दर्शन के लिए आते हैं। विश्व की एक मात्र प्रतिमा जिसमें मां भवानी नालछा और बाबा भैरव एक ही गादी पर विराजित है।
बताया जाता है कि मां नालछा का मंदिर राजा दशरथ के समय यानि सतयुग का है। कई वर्षों तक माली समाज द्वारा माता की सेवा पूजा, अर्चना की गई। करीब 25 वर्ष पहले मंदिर शासन के अधीन होने के बाद से व्यवस्था में परिवर्तन हो गया। पुजारी के अनुसार आरती के समय माता की प्रतिमा पर चढ़ाए जाने वाले फूल आज भी गिरते हैं, जिससे मान्यता यह है कि आरती में भक्तों को आशीर्वाद देती है। नालछामाता मंदिर पर नियमित आने वाले भक्तों ने बताया कि मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है।
शेर की धहाड़ सुन डर गई थी औरंगजेब की सेना
मान्यता यह भी है कि माता मंदिर पर शेर आते थे। इसका उल्लेख एक घटना में होता है। इस्वी सन 1691 में औंरगजेब की सेना नालछा के मैदान में ठहरी हुई थी। वहां पर किसी शेर के दहाडने की आवाज आ रही थी। इसके चलते पूरी सेना में खौफ छा गया। गुप्तचर विभाग ने जंगल में शेर को ढूंढने का प्रयास भी किया, लेकिन शेर कहीं नहीं मिला। इसी चमत्कार के चलते औरंगजेब की सेना ने मंदिर को कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाया।
नालछामाता मंदिर पर कभी भी कोई चोरी व लूट की घटनाएं नहीं हुई। मंदिर से जुड़े लोगों के अनुसार करीब आठ बार मंदिर परिसर में चोर व लूटेरे आ चुके हैं। लेकिन कभी भी मंदिर के अंदर तक नहीं पहुंचे। चैनल गेट के हाथ लगाते ही चैनल बजने से कभी सुरक्षा कर्मी जाग गए तो कभी गेट तक पहुंचने के बाद चोर उलटे पांव लौट गए।
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(Udaipur Kiran) / अशोक झलोया
