
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में हुआ “पोस्टर विमोचन”
इंदौर, 24 अगस्त (Udaipur Kiran) । भारतीय परंपरा और संस्कृति में स्त्री की भूमिका हमेशा से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक भारत तक स्त्री को सृजन, शक्ति और प्रेरणा का स्वरूप माना गया है। समय के साथ उसकी भूमिका, चुनौतियां और योगदान बदलते रहे हैं, लेकिन उसका महत्व कभी कम नहीं हुआ। इसी संदर्भ में प्रज्ञा प्रवाह, इंदौर (वाग्देवी विचार न्यास) द्वारा आगामी 28 सितम्बर को “नारी तू नारायणी” शीर्षक के साथ एक दिवसीय चिंतन कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस आयोजन का उद्देश्य स्त्री के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर भारतीय दृष्टि से विमर्श करना है।
इस महत्वपूर्ण सम्मेलन का पोस्टर विमोचन रविवार को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर में हुआ। विमोचन समारोह में विनय दीक्षित, संयोजक (मध्य एवं पश्चिम क्षेत्र, प्रज्ञा प्रवाह), कुलगुरु प्रो. राकेश सिंघई, प्रो. दीपक श्रीवास्तव, प्रज्ञा प्रवाह क्षेत्र संयोजक मिलिंद दांडेकर और प्रांत संयोजक प्रज्ञा प्रवाह-मयंक सक्सेना शामिल हुए। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि स्त्री शक्ति केवल भारतीय समाज की धरोहर नहीं बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाली भी है।
सम्मेलन का केंद्रीय विषय ‘स्त्री – कल, आज और कल’ रखा गया है। इसके तहत यह देखा जाएगा कि इतिहास में स्त्री का स्थान और योगदान क्या रहा, वर्तमान परिस्थितियों में उसकी भूमिका किस प्रकार की है और भविष्य के भारत के निर्माण में स्त्री किस रूप में सहभागी हो सकती है। इस विषय पर गहन विमर्श के लिए देश की प्रमुख विदुषी वक्ताओं को आमंत्रित किया गया है।
सम्मेलन के चार सत्र होंगे। इन सत्रों में उच्चतम न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता एवं अखिल भारतीय महिला आयाम प्रमुख मोनिका अरोड़ा, हरियाणा विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. सुषमा यादव, संस्कृति स्कॉलर और लेखिका अमी गणात्रा, भारतीय स्त्री शक्ति चिंतक नयना सहस्त्रबुद्धे तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर एवं लेखिका अदिति पासवान अपने विचार रखेंगी। इन विदुषियों का अनुभव, शोध और दृष्टिकोण स्त्री विमर्श को नई दिशा देगा।
प्रज्ञा प्रवाह की महिला आयाम मालवा प्रांत प्रमुख समीक्षा नायक ने बताया कि सम्मेलन केवल चर्चा का मंच नहीं बल्कि चिंतन का भी अवसर होगा। इसमें स्त्री जागृति, उसकी सामाजिक भूमिका, आर्थिक योगदान और सांस्कृतिक धरोहर में उसके स्थान पर विस्तृत विमर्श होगा। साथ ही यह भी समझने का प्रयास किया जाएगा कि भविष्य के भारत में स्त्री की भागीदारी किस प्रकार और कितनी हो सकती है।
सम्मेलन में इंदौर और उज्जैन संभाग की प्रबुद्ध महिलाएं तथा महिला विषयक विषयों पर कार्य करने वाले विद्वान प्रतिभागी होंगे। इससे यह आयोजन केवल बौद्धिक आदान-प्रदान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसमें स्थानीय समाज की सक्रिय भागीदारी भी होगी। आयोजकों का मानना है कि जब समाज के विभिन्न वर्ग, विशेषकर महिलाएं, इस प्रकार के विमर्श में शामिल होती हैं तो विचार केवल सिद्धांत तक सीमित नहीं रहते बल्कि व्यवहार में उतरने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं।
समीक्षा नायक का कहना है कि भारतीय दृष्टि में स्त्री को हमेशा “शक्ति” और “प्रेरणा” के रूप में देखा गया है। “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” जैसे श्लोकों से लेकर आधुनिक संविधान तक स्त्री के महत्व को स्वीकारा गया है। किंतु व्यावहारिक जीवन में अभी भी स्त्री अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। शिक्षा, रोजगार, समान अवसर, सुरक्षा और सामाजिक मान्यता जैसे मुद्दों पर स्त्री विमर्श लगातार जारी है। ऐसे में यह सम्मेलन समय की मांग है, जो भारतीय परंपरा और आधुनिक आवश्यकताओं को जोड़ते हुए समाधान खोजने की कोशिश करेगा।
पोस्टर विमोचन समारोह के दौरान वक्ताओं ने भी इस तथ्य को रेखांकित किया कि केवल अधिकारों की चर्चा पर्याप्त नहीं है, बल्कि जिम्मेदारियों और योगदान की भी बात की जानी चाहिए। स्त्री केवल समाज का हिस्सा नहीं, बल्कि समाज की निर्माता है। इसलिए उसकी भूमिका को सम्मानित करना और उसे सशक्त बनाना राष्ट्र निर्माण का अभिन्न अंग है।
उल्लेखनीय है कि प्रज्ञा प्रवाह लंबे समय से भारतीय चिंतन परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के संवर्धन के लिए कार्यरत है। इस संस्था द्वारा आयोजित यह सम्मेलन उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आयोजकों का मानना है कि स्त्री विमर्श केवल पश्चिमी सोच या आधुनिक अवधारणाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि भारतीय परंपरा और अनुभव से भी उसका मार्गदर्शन होना चाहिए। पोस्टर विमोचन के साथ ही इस आयोजन का शंखनाद हो चुका है। नारी विमर्श को नई ऊँचाइयाँ देने वाले इस सम्मेलन से समाज में सकारात्मक संदेश जाएगा कि स्त्री केवल परिवार या समाज की धुरी नहीं, बल्कि भविष्य के भारत की मार्गदर्शक शक्ति भी है।
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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
