


पणजी, 21 नवंबर (Udaipur Kiran) । अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में देश-विदेश के जाने माने फिल्म निर्माता निर्देशक, कलाकार, संगीतकार, कैमरामैन भावी फिल्मकारों को सिनेमा की विधा, बारीकियां और सिनेमा जगत के हालात से मुकाबला करना सिखाएंगे।
हमेशा की तरह इस बार मास्टर क्लास में 21 क्लास दी जाएंगी। फिल्म जगत की जानी मानी हस्तियां मुजफ्फर अली, अनुपम खेर, विधु विनोद चोपड़ा, खुशबू सुंदर आदि मास्टर क्लास ले रहे हैं।
उद्घाटन सत्र में सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री एल मुरुगन ने कहा कि अपने फन के माहिर कलाकार भावी सिनेमा पीढ़ी को अपने अनुभव का ज्ञान देंगे उनके प्रश्नों के उत्तर देंगे और तकनीकी बारीकियां समझाएंगे।
मुरुगन ने कहा कि इस बार 200 फिल्में दिखाई जाएंगी जो दुनिया भर में भारत के बढ़ते प्रभाव का प्रतिनिधित्व करेंगी। ये महोत्सव विकसित भारत से भी जुड़ा है। उन्होंने कहा कि इस दफा पहली बार 50 महिला निर्माता निर्देशकों की फिल्में महोत्सव में शामिल की गयी हैं। ये सिने जगत में नारी शक्ति की उपस्थिति दर्ज करती हैं।
सूचना एवं प्रसारण सचिव संजय जाजू ने कहा कि अपने जमाने के बेहतरीन सिनेमा कार और समकालीन सिनेमाकार मनोरंजन जगत में जाने के इच्छुक युवाओं को फिल्म बनाने की कला की हर विधा समझाएंगे। मास्टर क्लास में महारथियों के लेक्चर के अलावा पैनल चर्चा, वर्कशॉप, बेहतरीन फिल्मों का सिंहावलोकन कैसे दृश्य फिल्माए गए निर्माता निर्देशक ने अपने मन के भीतर की कथा कहानियों को पर्दे पर कैसे उतारा ये बताया जाएगा।
जाजू ने कहा कि देश के विभिन्न, मास कम्युनिकेंन्स कॉलेजों, विश्वविद्यालयों के मीडिया विभागों और सिनेमा संस्थानों के छात्र मास्टर क्लास ले रहे हैं। छात्रों को बहुत खुशी है कि उनको एकसाथ एक मंच पर देश-विदेश के सिनेमा महारथियों से सीखने को मिल रहा है। उद्घाटन सत्र में एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक प्रकाश मगदूम और दक्षिण भारत के फिल्म निर्माता रवि कोट्टाकारा भी मौजूद थे।
उद्घाटन के चंद क्षणों के बाद बाद पहली बार आम जनता के सामने फिल्म महोत्सव में सार्वजनिक रूप से मास्टर क्लास का उद्घाटन किया गया जिसमें जाने माने फिल्मकार मुजफ्फर अली से उनके बेटे एवं फिल्म निर्देशक शाद अली ने उनकी अधूरी फिल्म ज़ूनी के निर्माण की कहानी और उससे जुड़ी दिलचस्प जानकारी साझा की।
बेटे शाद अली ने एक सरल सवाल के साथ शुरुआत की: पहला पेशा कौन सा था जिसका आपने कभी सपना देखा था, बड़ा हो रहा था? मुजफ्फर अली का जवाब बचपन के रेखाचित्रों, कला-वर्ग पुरस्कारों और कविता के हमेशा मौजूद सेतु के टेपेस्ट्री के रूप में सामने आया। फिल्में बाद में आईं जहां कल्पना स्वतंत्र रूप से विचरण कर सकती है। उन्होंने याद किया कि कोलकाता ने एक ऐसी दुनिया की शुरुआत की जहां सिनेमा और कलात्मकता आपस में जुड़े हुए थे और जहां यह अप्रत्याशित संभावना बन गई।
अपने शुरुआती वर्षों के दौरान, मुजफ्फर अली ने पलायन करने वाले लोगों की दुर्दशा और असहायता को देखा, एक ऐसा अनुभव जो विस्थापन के दर्द के बारे में उनकी फिल्म गमन का भावनात्मक मूल बन गया। हालांकि फिल्म ने आईएफएफआई में सिल्वर पीकाॅक जीता, मुजफ्फर अली ने कहा कि उन्होंने इस उपलब्धि से कभी भी ऊंचा महसूस नहीं किया। उन्होंने समझाया कि सफलता ने उन्हें ‘सशक्त’ महसूस नहीं कराया, इसने केवल उन्हें याद दिलाया कि नए संघर्ष और नई चुनौतियां हमेशा आगे की प्रतीक्षा कर रही थीं। फिर बातचीत शिल्प और संगीत की ओर मुड़ गई।
शाद अली ने मुजफ्फर अली के शुरुआती कार्यों के विशिष्ट मंचन को देखा और पिता ने समझाया कि कैसे शेष जड़ें गमन से उमराव जान तक उनके दृष्टिकोण के लिए सबसे अहम थीं। उन्होंने खुलासा किया कि संगीत कविता, दर्शन और समर्पण से विकसित हुआ। उन्होंने बताया कि उमराव जान की धुनें एक काव्यात्मक संवेदनशीलता से पैदा हुई थीं जो विनम्रता और सहयोग की मांग करती थी। उन्होंने कहा, कविता आपको सपने दिखाती है और कवि को हमारे साथ सपने देखना चाहिए।
बातचीत में फिर ज़ूनी आया, एक सपना जो एक चुनौती बन गया। कश्मीर में एक द्विभाषी फिल्म की योजना बनाने से रसद, सांस्कृतिक और मौसमी बाधाएं आईं जिन्होंने अंततः फिल्म निर्माण को रोक दिया। मुजफ्फर अली ने इस अनुभव को कई सपनों से परे एक सपना और इसके पतन में दर्दनाक बताया। फिर भी अपनी अधूरी स्थिति में भी, इसकी आत्मा सहन करती रही। उन्होंने दर्शकों को याद दिलाया कि कश्मीर एक स्थान से अधिक है, यह एक जीवित संस्कृति है। उन्होंने स्थानीय युवा प्रतिभाओं से कश्मीरी विरासत को आगे बढ़ाने का आग्रह करते हुए कहा, कश्मीर के लिए फिल्मों का जन्म कश्मीर में होना चाहिए।
प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान, उन फिल्मों को फिर से बनाने के बारे में एक सवाल उठाया गया था जो कश्मीर की वास्तविक संस्कृति को दर्शाती हैं, न कि केवल गीतों के लिए एक पृष्ठभूमि के रूप में काम करने के लिए। मुजफ्फर अली ने दृढ़ विश्वास के साथ जवाब दिया कि ज़ूनी की कल्पना ऐसी फिल्म के रूप में की गई थी। उन्होंने कहा, कश्मीर के पास सब कुछ है। आपको प्रतिभा को आमंत्रित करने की आवश्यकता नहीं है, आपको इसे वहां विकसित करने की आवश्यकता है।———–
(Udaipur Kiran) / सचिन बुधौलिया