

दानवीर राजा कर्ण से जुड़ी कथा, जहां आज भी गूंजती है श्रद्धा की गाथा
खंडित मूर्तियों में बसती है आस्था, हजारों श्रद्धालु हर साल आते हैं कर्ण देवी धाम
दो हजार साल पुराना मंदिर, जहां माता के वरदान से मिलता था प्रतिदिन सवा मन सोना
औरैया, 30 सितंबर (Udaipur Kiran News) । उत्तर प्रदेश के औरैया – इटावा – जालौन के दुर्गम बीहड़ क्षेत्र में यमुना नदी के तट पर स्थित माता कर्ण देवी का ऐतिहासिक मंदिर श्रद्धा और आस्था का अद्भुत केंद्र माना जाता है। खासकर नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां आकर माता से प्रार्थना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यही कारण है कि इस मंदिर में न केवल उत्तर भारत बल्कि मध्य भारत के विभिन्न हिस्सों से भी हजारों श्रद्धालु और पर्यटक हर वर्ष आते हैं।
जिले के कस्बा भीखेपुर से लगभग 14 किलोमीटर दूर बीहड़ में स्थित यह मंदिर करीब दो हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। जनश्रुति के अनुसार, वैराग्य स्टेट के राजा कर्ण ने इस प्राचीन मंदिर में माता भगवती की स्थापना कराई थी। राजा कर्ण को दानवीर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि माता कर्ण देवी के आशीर्वाद से उन्हें प्रतिदिन सवा मन सोना प्राप्त होता था, जिसे वह दीन-दुखियों और अपनी प्रजा में दान कर दिया करते थे।
किंवदंती है कि माता को प्रसन्न करने के लिए राजा कर्ण तपस्या स्वरूप खोलते तेल में खड़े होकर पूजा-अर्चना करते थे और स्वयं को देवी को समर्पित कर देते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें सवा मन सोना प्रतिदिन दान करने का आशीर्वाद दिया। राजा कर्ण के इस अद्भुत दान की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई थी।
पंचनद धाम के वरिष्ठ पत्रकार बीरेन्द्र सिंह बताते है कि इसी रहस्य को जानने के लिए मध्य प्रदेश के उज्जैन नरेश राजा विक्रमादित्य यहां आए और नौकर के वेश में राजा कर्ण के साथ रहने लगे। एक दिन उन्होंने देखा कि किस प्रकार राजा कर्ण ब्रह्ममुहूर्त में तपस्या कर माता से सोने का वरदान प्राप्त करते हैं। इसके बाद विक्रमादित्य ने छलपूर्वक राजा कर्ण का रूप धारण कर पूजा करने का प्रयास किया।
माता ने उन्हें तुरंत पहचान लिया और वरदान मांगने को कहा। विक्रमादित्य ने माता से आग्रह किया कि वे उनके साथ उज्जैन चलें, मगर माता ने इंकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर विक्रमादित्य ने तलवार से मूर्ति पर प्रहार कर दिया और उसे दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया। मूर्ति का ऊपरी हिस्सा वह उज्जैन ले गए, जहां आज भी वह ‘सिद्धि देवी’ के नाम से पूजित हैं। जबकि शेष भाग राजा कर्ण ने यमुना तट स्थित इस मंदिर में स्थापित कर दिया, जिन्हें आज भक्त माता कर्ण देवी के रूप में पूजते हैं।
खंडित मूर्तियों और इस ऐतिहासिक कथा से जुड़ी मान्यताओं को देखने-सुनने के लिए आज भी श्रद्धालु यहां खिंचे चले आते हैं। नवरात्र में तो इस प्राचीन मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। यहां नवरात्रि पर्व में रामलीला व मेले का आयोजन भी चल रहा है ।
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(Udaipur Kiran) कुमार
