
उज्जैन, 23 नवंबर (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के उज्जैन में रविवार को अ.भा.सद्भावना व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए पर्यावरणविद् पद्मभूषण अनिल प्रकाश जोशी ने कहाकि प्रकृति के प्रचंड संकेत न समझे तो विनाश की ओर बढऩा तय है। मनुष्य ने हमेशा प्रकृति का उपभोग किया पर लौटाया कुछ नहीं। प्रकृति जिस वेग से बदली है, हमने उसे उतनी गंभीरता से कभी लिया ही नहीं। आज प्रचंड गर्मी का जो असहनीय वातावरण हमारे सामने है, वह चेतावनी नहीं, बल्कि दंड के रूप में खड़ा है।
जोशी ने कहाकि कभी वर्षा ऋतु के गीत गाए जाते थे, उसकी प्रतीक्षा उत्सव की तरह होती थी। अब वही वर्षा विनाश लेकर लौट रही है। फसलें सूख रही हैं, धरती तप रही है और चक्रवातों की खबरों से अखबार रोज भय से भर रहे हैं। यह प्रकृति का दंड है, जिसे हम सब भोगने को विवश हैं। प्रकृति के इन प्रचंड संकेतों को न समझे तो विनाश की ओर बढऩा तय है।
समापन दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में ऑनलाइन संबोधित करते हुए आपने कहाकि हमने प्रकृति को नहीं, अपनी इच्छाओं और सुविधाओं को संरक्षित किया। जिन्हें अपना कहा, उन्हें पाला-पोसा, जिन्हें अपना न माना, उनके अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया। हमने अपनी खुशी के लिए कुत्तों को घरेलू बनाया और परिणाम यह कि आज हजारों आवारा कुत्ते गलियों में घूम रहे हैं। दूसरी ओर भेडि़ए, चिंपांजी और वे सभी जीव, जिनकी उपस्थिति प्रकृति के संतुलन के लिए अनिवार्य है, उनकी संख्या निरंतर घट रही है। यह स्पष्ट है कि हमने अपने स्वार्थ के जीवों को तो पनपने दिया, प्रकृति के लिए आवश्यक जीवन को नहीं।
हमने पृथ्वी से सिर्फ लिया जबकि पृथ्वी को ऐसे जीव चाहिए जो लेने के साथ उसे कुछ लौटाएं भी। मनुष्य ने हमेशा उपभोग किया पर लौटाया कुछ नहीं,। आज ग्लोबल वार्मिंग हो, क्लाइमेट चेंज हो—हर संकट के केंद्र में मनुष्य की अतिशय सुविधाएं ही हैं। हम स्वयं को तो नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन प्रकृति पर नियंत्रण का जो भ्रम हमने पाल रखा है, वह अब टूटने लगा है। जंगलों, नदियों और असंख्य प्राणियों का विनाश कर मनुष्य आज स्वयं को समाप्त करने के मार्ग पर बढ़ चला है। युद्ध की विभीषिका पूरे विश्व पर मंडरा रही है,मानो मनुष्य अब मनुष्य का ही शत्रु हो गया हो। यह मानकर चलिए यदि मनुष्य अपनी राह नहीं बदलेगा, तो प्रकृति उसे नहीं छोड़ेगी।
जोशी ने कहाकि पृथ्वी के इतिहास में दो बार संपूर्ण विनाश हुआ है। हर बार प्रकृति ने स्वयं को पुनर्गठित किया और ऐसे जीवन को जन्म दिया जो उसके अनुरूप हो सके। उसी क्रम में मनुष्य का उद्भव हुआ। आज मनुष्य ही उस प्रकृति को समाप्त करने की तैयारी में है,जिसने उसे जन्म दिया। अब भी समय है यदि हम स्वयं को बदलें, तभी प्रकृति हमें बचाने का निर्णय लेगी। वरना आप नहीं बदलेंगे, तो प्रकृति आपको बदल देगी।
अध्यक्षता नृत्याचार्य पद्मश्री जयराम ने की। दीप प्रज्वलन माधव विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. हरीश व्यास, मुकेश ठाकुर, सोनू गहलोत, हर्षा वाघे, अमृता कुलश्रेष्ठ ने किया। अतिथि स्वागत युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ, महेश ज्ञानी, शशि भूषण ने किया। पुष्पेंद्र शर्मा, यूएस छाबड़ा, डॉ. प्रेमप्रकाश अग्निहोत्री, अजय मेहता, पं. उमाशंकर भट्ट, राजेंद्र तिवारी, प्रशांत शर्मा, राजेंद्र तिवारी, पुष्पेंद्र शर्मा, डॉ. एसएन शर्मा, कृष्ण जोशी, श्वेता पंडया, प्रफुल्ल शुक्ला उपस्थित थे। संचालन श्रेया शुक्ला ने किया।
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(Udaipur Kiran) / ललित ज्वेल