जम्मू, 24 सितंबर (Udaipur Kiran News) । जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने बुधवार को डोडा (पूर्व) के विधायक मेहराज मलिक द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार कर ली जिसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए), 1978 के तहत अपनी निवारक हिरासत को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी कौल ने मामले की सुनवाई के बाद गृह विभाग के प्रधान सचिव, डोडा के ज़िला मजिस्ट्रेट, डोडा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और कठुआ ज़िला जेल के अधीक्षक को सुनवाई के बाद नोटिस जारी किए। जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता मोनिका कोहली ने खुली अदालत में ये नोटिस स्वीकार किए। अदालत ने सरकार को अगली सुनवाई की तारीख 14 अक्टूबर तक या उससे पहले अपना जवाब दाखिल करने का समय दिया।
विचाराधीन हिरासत आदेश, संख्या 05/2025 दिनांक 8 सितंबर, 2025, जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम की धारा 8 के तहत जिला मजिस्ट्रेट डोडा द्वारा पारित किया गया था। मलिक की कानूनी टीम जिसका नेतृत्व वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल पंत कर रहे थे और जिसमें अधिवक्ता एस.एस. अहमद, अप्पू सिंह सलाथिया, एम. जुलकरनैन चौधरी और जोगिंदर सिंह ठाकुर शामिल थे ने तर्क दिया कि यह आदेश मनमाना और व्यक्तिगत पूर्वाग्रह से प्रेरित था।
कार्यवाही के दौरान महराज के वकील ने मामले की गंभीरता का हवाला देते हुए अदालत से सरकार को जल्द से जल्द अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश देने का आग्रह किया। अधिवक्ता पंत ने दलील दी कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति एक निर्वाचित प्रतिनिधि है जिसे गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया है। जनता उससे अपने पद के कर्तव्यों का निर्वहन करने की अपेक्षा करती है इसलिए इस मामले की शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता है।
हिरासत आदेश को रद्द करने की मांग के अलावा मलिक ने प्रतिवादियों से 5 करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा किया है जिसमें उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कटौती का आरोप लगाया गया है। उनकी याचिका में हिरासत की वैधता को चुनौती देने वाले कई आधार सूचीबद्ध हैं जिनमें ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा उचित विवेक का प्रयोग न करना और राजनीतिक कारणों से निवारक निरोध शक्तियों का कथित दुरुपयोग शामिल है।
न्यायालय ने निजी प्रतिवादी डोडा के उपायुक्त एस. हरविंदर सिंह (आईएएस) को भी नोटिस जारी किया। इस मामले को व्यापक सार्वजनिक महत्व का बताया गया है और इस पर 14 अक्टूबर, 2025 को पीठ द्वारा फिर से सुनवाई की जाएगी।
जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम, 1978 जिसके तहत मलिक को हिरासत में लिया गया है, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए निवारक निरोध की अनुमति देता है। यह कानून अपने व्यापक दायरे और बिना सुनवाई के लंबी हिरासत अवधि के कारण लंबे समय से बहस और आलोचना का विषय रहा है।
फिलहाल सभी की निगाहें 14 अक्टूबर की सुनवाई पर टिकी हैं जब सरकार द्वारा अदालत के समक्ष अपना जवाब पेश किए जाने की उम्मीद है। यह परिणाम जम्मू-कश्मीर में निवारक निरोध शक्तियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों के अंतर्संबंध में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है।
(Udaipur Kiran) / बलवान सिंह
