
उज्जैन, 20 जुलाई (Udaipur Kiran) । बाबा महाकालेश्वर की दूसरी सवारी को भव्य स्वरुप देने के लिए 08 जनजातीय कलाकारों के दल प्रस्तुति देंगे। सवारी सोमवार को अपरान्ह 4 बजे महाकाल मंंदिर से निकलेगी। सवारी परम्पगत मार्गों से होकर क्षिप्रा नदी के रामघाट पर पहुंचेगी। यहां पूजन पश्चात पुनः मंदिर जाएगी।
सवारी में अज्जू सिसोदिया के नेतृत्व में झाबुआ का भगोरिया नृत्य , छवीलदास भावली के नेतृत्व में नाशिक महाराष्ट्र के जनजातीय सौगी मुखोटा नृत्य , बनसिंह भाई गुजरात जनजातीय राठ नृत्य , खेमराज राजस्थान का गैर-घूमरा जनजातीय नृत्य सम्मिलित है| यह सभी दल श्री महाकालेश्वर भगवान की सवारी के साथ सम्पूर्ण सवारी मार्ग में अपनी प्रस्तुति देते हुए चलेगे |
इन दलों के अतिरिक्त उडीसा के लोकनृत्य शंख ध्वनि सुनील कुमार साहू के नेतृत्व में व छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य लोकपंथी का दल दिनेश कुमार जागड़े के नेतृत्व में महाकालेश्वर भगवान के सवारी के आगमन पर रामघाट पर प्रस्तुति देंगे|
साथ ही उसी दौरान अजय कुमार के नेतृत्व में हरियाणा का लोकनृत्य हरियाणवी घुमर और मध्यप्रदेश छतरपुर के बरेदी लोकनृत्य दल रवि अहिरवार के साथ क्षिप्रा तट के दूसरी ओर दत्तअखाड़ा क्षेत्र पर श्री महाकालेश्वर भगवान के सवारी के रामघाट आगमन पर प्रस्तुति देंगे|
सभी जनजातीय दल संस्कृति विभाग भोपाल, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद व त्रिवेणी कला एवं पुरातत्वव संग्रहालय के माध्यम से भगवान श्री महाकालेश्वर जी की दूसरी सवारी सहभागिता करेगे |
दलों का परिचय
1. जोड़ी शंख , उडीसा
जोड़ी शंख का शाब्दिक अर्थ है दोहरा शंख – यह ओडिशा के गंजम जिले का एक जीवंत लोक नृत्य है। यह शंख-वादन और युद्ध-शैली की गतिविधियों का एक अद्भुत मिश्रण है, जिसे रंग-बिरंगे परिधान पहने और चंगू जैसे पारंपरिक ढोल और शहनाई-शैली की माहुरी पर नृत्य करते हुए एक साथ दो शंख बजाते हुए कलाकारों द्वारा किया जाता है।
ग्रामीण युद्ध परंपराओं में निहित, पिरामिड निर्माण और योग-प्रेरित आसन जैसे कलाबाज़ियों का प्रदर्शन करते हुए लगातार शंख बजाने के लिए अत्यधिक सहनशक्ति और श्वास नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
कलाकार अक्सर धोती-कुर्ता या साड़ी जैसी पोशाक पहनते हैं, और लय के साथ सटीक रूप से आंदोलनों का समन्वय करते हैं। जोड़ी शंख की सांस्कृतिक भूमिका पारंपरिक रूप से धार्मिक अवसरों, शादियों, त्योहारों और सामुदायिक जुलूसों में किया जाता है।
2. पंथी लोक नृत्य, छत्तीसगढ़
पंथी लोक नृत्य छत्तीसगढ़ में जन्मे निर्गुणी धर्मगुरु गुरु घासीदास जी के अनुयायियों का आराधनामय नृत्य व गीत है पंथी | आध्यात्मिकता में डूबे, जाति विशेष के इस रोचक नृत्यगीत में गुरु शिरोमणि घासीदास जी की महिमा एवं कृपा का बखान है और है गुरु सेआशीर्वाद की विनम्र याचना | निर्गुण उपासक एवं सत्य पंथी समाज द्वारा पारमपरिकढंग से गाये जाने के कारण ही इसे पंथी के नाम से जाना जाता है श्रम साध्य और कठिन करतब लिए नृत्य गीत पंथी का अपना विशिष्ट प्रभाव क्षेत्र और आकर्षण है |
3.सोंगी मुखौटा, नाशिक महाराष्ट्र
चैत्र पूर्णिमा पर सप्तश्रृंगी देवी की पुजा के साथ महाराष्ट्र में सोंगी मुखौटा नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। होली के बाद यह उत्सव मनाया जाता है और पारंपारिक व्रत एंव पूजा के बाद बलि देने का रिवाज भी इसमें शामिल है। ढोल, संबल, पावरी और हाथ में छोटी दंडिया लेकर जोश पूर्ण नृत्य किया जाता है। नर्तक पुरुष कलाकार मिलकर नरसिह भगवान विष्णु का एक अवतार) एवं कालभैरव, वेताल के भी मुखोटे पहनकर लय, ताल के साथ जोशपूर्ण नृत्य करते है | यह नृत्य असत्य ओर सत्य के विजय का भी संदेश देता है।
सोंगी मुखौटा नृत्य महाराष्ट्र और अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रचलित है, जिसमें कलाकार मुखौटे पहनते हैं और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं। इस नृत्य में ढोल, पावरी और संबल वाद्ययंत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
4. राठवा आदिवासी जनजातीय होली नृत्य , गुजरात
गुजरात मे छोटा उदयपुर जिला मे राठवा आदिवासी-जनजाति समुदाय बसते हे । यह खेती पर आश्रित समुदाय है साथ मे पारंपरिक संस्कृजति एवं त्योसहार एंव प्रकृति से जूड़े हुए है । राठवा जनजाति समुदाय द्वारा होली के त्योीहार विशेष रूप से मनाया जाता है ।
इस समुदाय द्वारा फागुन माह में बड़ी श्रद्धा के साथ होली पर मन्नूत के रूप में पाँच दिनों तक एक गाँव से दुसरे गाँव दक्षिणा मांगने जाया करते है, अंतिम दिवस सभी समुदाय के लोग गाँव के मुखिया के साथ होली माता की पूजा करते है। वाद्ययंत्र- बड़ा राम ढ़ोल, बांसुरी, तलोड़ी एवं शहनाई के साथ विविध वाद्यों का उपयोग करते है ।
5. बरेदी लोक नृत्ये, छतरपुर
बरेदी लोक नृत्य मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है। बरेदी नृत्य मध्य प्रदेश के अहीर समुदाय द्वारा किया जाने वाला एक जीवंत लोक नृत्य है, विशेष रूप से दिवाली और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहारों के दौरान विशेष रूप से लोकप्रिय है। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति कृष्ण से हुई थी, जो एक ग्वाले थे, और यह समुदाय की गायों के प्रति श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। इस नृत्य में गायन, ढोल बजाना और जीवंत गतिविधियां शामिल होती हैं, जिसमें अक्सर नर्तक गांव के घरों में जाकर आशीर्वाद और प्रार्थना करते हैं।
6. हरियाणवी घुमर, हरियाणा
फाग हरियाणा का एक बड़ा महत्वपूर्ण त्यौहार है फागुन के महीने में मनाया जाता है इस त्यौहार पर देवर भाभी जीजा साली आपस में एक दूसरे को रंग लगाते हैं और बड़े प्यार और उल्लास के साथ मानते हैं इसमें महिलाएं और पुरुष एक दूसरे को रंग लगाते हैं और इस दिन औरतें अपने देवर को ,अपने जीजा, को अपने पति को कोलड़े लगाती हैं और महिलाएं अपने पति से श्रृंगार एवं आभूषणों की मांग करती हैं। भेदभाव से दूर यह त्योहार प्रेम का प्रतीक है
घूमर हरियाणा का लोक नृत्य है इसमें महिलाएं एकत्रित होकर नृत्य करती हैं और अपने पतियों से विभिन्न प्रकार की श्रृंगार की मांग करती हैं लड़कियां जोड़े बनती हैं और तेजी से घूमती हैं यह नृत्य होली गणगौर पूजा और तीज जैसे त्योहारों के अवसर पर किया जाता है | पुरुष धोती, कुर्ता, पगड़ी और गले में कंठी पहनते हैं व स्त्रियां दामन, कुर्ती, तागड़ी, बोरला, कंठी, रमझोल पहन कर नृत्य करती हैं |
7 . भील जनजातीय नृत्य, धार
भगोरिया मुख्य रूप से भील जनजाति का त्योहार है | लेकिन इसमें भिलाला और पटेलिया जैसी अन्य जनजातीया भी भाग लेती है | भगोरिया मध्य प्रदेश की भील जनजाति का एक प्रसिद्ध त्यौहार और मेला है, जो झाबुआ, अलीराजपुर और धार जिलों में मनाया जाता है | यह होली से पहले सात दिनों तक चलता है और इसे भगोरिया हाट भी कहा जाता है|
भगोरिया, भील समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक उत्सव है, जिसमें युवक-युवती अपने जीवनसाथी का चुनाव करते हैं, और इस दौरान मेले, नृत्य और पारंपरिक संगीत का आयोजन होता है | यह नृत्य होली से 7 दिन पहले भगोरिया उत्सव के दौरान किया जाता है. यह झाबुआ, अलीराजपुर और धार जिलों में प्रसिद्ध है. भगोरिया नृत्य में पुरुष और महिलाएँ दोनों भाग लेते हैं, और इसे गैर कहा जाता है |
8. गैर-घूमरा जनजातीय नृत्य, राजस्थान
गैर और घूमर, दोनों राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्य हैं। गैर, एक पारंपरिक नृत्य है जो आमतौर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है, विशेषकर मेवाड़ और मारवाड़ क्षेत्रों में, जबकि घूमर, महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक और प्रसिद्ध लोक नृत्य है |
घूमर लोकनृत्यों की रानी है तो गैर नृत्य लोकनृत्यों का राजा है। यह मारवाड़ एवं मेवाड़ अंचल का प्रमुख लोकनृत्य है। गोल घेरे में इस नृत्य की संरचना होने के कारण यह ‘घेर’ और कालांतर में ‘गैर’ कहा जाने लगा।
राजस्थान में गैर नृत्य मेवाड़ और मारवाड़ क्षेत्रों में प्रसिद्ध है, खासकर बाड़मेर जिले में. इसे डांडी गैर या गैर घालना भी कहा जाता है. यह नृत्य होली के त्योहार के दौरान किया जाता है, विशेष रूप से होली के दूसरे दिन से 15 दिनों तक गैर नृत्य में पुरुष ढोल और थाली की थाप पर लकड़ी की छड़ी (डंडा) लेकर घेरे में घूमते हुए नृत्य करते हैं | घुमर नृत्य राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह नृत्य विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो पारंपरिक परिधान पहनकर गोल घेरे में घूमते हुए नृत्य करती हैं। यह नृत्य राजस्थान के लगभग सभी क्षेत्रों में प्रसिद्ध है, लेकिन मेवाड़, मारवाड़, जयपुर और बीकानेर जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से लोकप्रिय है |
—————
(Udaipur Kiran) / ललित ज्वेल
