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देवभूमि उत्तराखंड में बदल जाएगी मदरसा व्यवस्था ?

उत्तराखंड मदरसा बोर्ड का फाइल फोटो

उत्तराखंड में धामी मंत्रिमंडल का महत्वपूर्ण फैसला राज्य में गठित हाेगा अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण

देहरादून, 17 अगस्त (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में रविवार को मंत्रिमंडल की बैठक में एक और बड़ा फैसला लिया गया।राज्य में ‘उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण’ की स्थापना करने के प्रस्ताव काे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इस प्रस्ताव काे देवभूमि उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से बदलने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है।

दरअसल, उत्तराखंड में 452 पंजीकृत मदरसे हैं। इसके अलावा पांच सौ से अधिक मदरसे गैरकानूनी रूप से चल रहे थे, जिनमें से 237 पर सरकार ने ताला डाल दिया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों उत्तराखंड के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने मदरसों के छात्रों को मिलने वाली केंद्रीय छात्रवृत्ति में भी भारी अनियमितताएं पकड़ी गई थीं और मिड डे मील को लेकर भी गड़बड़ियां मिली थीं। इन्हीं विषयों के मद्देनजर धामी सरकार ने मदरसा व्यवस्था को अपने अधीन रखने के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कराया है। माना जा रहा है कि भविष्य में उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा व्यवस्था समाप्त हो जा सकती और इसका स्थान उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था ले ले।

उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक- 2025 के मुख्य बिंदु

उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक गंभीर विचार मंथन किया जा रहा है। इस विधेयक का उद्देश्य उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण की स्थापना करना है। यह प्राधिकरण अल्पसंख्यक समुदायों की ओर से स्थापित और प्रशासित शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देने, शैक्षिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने और उनसे संबंधित सभी मामलों का प्रबंधन करने के लिए जिम्मेदार होगा।

मुख्य प्रावधान:

* प्राधिकरण का गठन: विधेयक के तहत, एक उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। इसमें एक अध्यक्ष और ग्यारह सदस्य होंगे, जिन्हें राज्य सरकार नामित करेगी। अध्यक्ष अल्पसंख्यक समुदाय का एक शिक्षाविद् होगा, जिसे 15 वर्ष या उससे अधिक का शिक्षण अनुभव हो।

* मदरसों की मान्यता: इस अधिनियम के लागू होने के बाद, पूर्व में उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त मदरसों को शैक्षणिक सत्र 2026-27 से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के लिए प्राधिकरण से पुनः मान्यता प्राप्त करना आवश्यक होगा। 1 जुलाई, 2026 से, उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 और उत्तराखंड अशासकीय अरबी एवं फारसी मदरसा मान्यता विनियमावली, 2019 निरस्त मानी जाएगी।

* मान्यता के लिए शर्तें: अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए, संस्थानों को कुछ अनिवार्य शर्तें पूरी करनी होंगी। इनमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि संस्थान किसी अल्पसंख्यक समुदाय की ओस से स्थापित और संचालित हो, परिषद से संबद्ध हो और इसका प्रबंधन एक पंजीकृत निकाय (सोसायटी, न्यास, या कंपनी) की ओर से किया जा रहा हो। इसके अतिरिक्त, गैर-अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों का नामांकन 15 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए।

* पाठ्यक्रम और परीक्षाएं: प्राधिकरण अल्पसंख्यक समुदाय के धर्मों और भाषाओं से संबंधित विषयों के लिए पाठ्यक्रम विकसित करेगा और अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अतिरिक्त विषयों से संबंधित परीक्षाएं आयोजित करने, छात्रों का मूल्यांकन करने और प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए मार्गदर्शन देगा।

यह विधेयक राज्य में अल्पसंख्यक शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

उत्तराखंड में पहली बार इस तरह की व्यवस्था बनाई गई है जिसमें सभी अल्पसंख्यक समुदायों के संविधानिक अधिकारों की रक्षा करते हुए सभी अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को मान्यता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है । उल्लेखनीय है कि सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, मुस्लिम और पारसी समुदाय इसमें सम्मिलित हैं, यह सब अल्पसंख्यक समुदाय में गिने जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय के धार्मिक शिक्षा संस्थान को मान्यता देने की ही व्यवस्था थी। अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक शिक्षा व्यवस्था के साथ साथ मूलभूत शिक्षा बच्चों को देने के लिए उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद के माध्यम से अल्पसंख्यक बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने की क़वायद की गई है ।

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(Udaipur Kiran) / जितेन्द्र तिवारी

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