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बिहार के मिथिलांचल में तपस्या और आस्था का पर्व मधुश्रावणी सम्पन्न

पूजा करती नवविवाहिता

भागलपुर, 27 जुलाई (Udaipur Kiran) ।बिहार में मिथिलांचल की परंपराओं में नवविवाहिताओं द्वारा मनाया जाने वाला 13 दिवसीय मधुश्रावणी पर्व इस वर्ष रविवार को टेमी (दुल्हन के घुटनों को जलते हुए दीपक से दागाना) दागने की रस्म के साथ सम्पन्न हो गया।

यह पर्व एक ओर जहां नवविवाहित स्त्रियों की ससुराल में सुख-शांति और समृद्धि की कामना का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह लोक परंपरा, स्त्री धर्म और आस्था का एक जीवंत रूप भी है। पूजा के अंतिम दिन की विशेष रस्म, जिसे टेमी दागना कहते है, में नवविवाहिता के घुटने और पंजे जलते दीपक की बाती से हल्के रूप में स्पर्श कर दागे जाते हैं। यह परंपरा त्याग, तपस्या और नारी धर्म की स्वीकार्यता का प्रतीक मानी जाती है।

यह पूजा नवविवाहिता अपने मायके में रहकर, ससुराल से भेजी गई सामग्री से करती हैं। इस दौरान एक महिला पुजारिन प्रतिदिन नवविवाहिताओं को सावित्री-सत्यवान, शिव-पार्वती, राम-सीता, राधा-कृष्ण, मैना पंचमी, विषहरी, बिहुला-मनसा, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, समुद्र मंथन और सती की कथा जैसे धार्मिक एवं लोक कथाएं सुनाती हैं। पूजा के समय महिलाएं गोसाईं गीत, कोहबर गीत और गौरी भगवती गीत गाकर धार्मिक माहौल को और भी पावन बना देती हैं।

पूजा स्थल पर भगवान शिव, माता पार्वती, नाग-नागिन, हाथी और विषहरी की मिट्टी की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। इन मूर्तियों को बांस के पत्तों, बेलपत्र, फूलों, और पारंपरिक मैथिली लोकचित्रकला से सजाया जाता है। पर्व के अंतिम दिन, पूजा में उपयोग की गई सारी मूर्तियां और सामग्री को विधिवत जल प्रवाहित किया जाता है, जिससे इस संपूर्ण पर्व का समापन होता है।मधुश्रावणी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मिथिला की संस्कृति, कला, परंपरा और नारी श्रद्धा की समृद्ध विरासत को भी प्रतिबिंबित करता है।

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(Udaipur Kiran) / बिजय शंकर

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