Jharkhand

मां दिउड़ी मंदिर में 200 साल से जारी है बलि की परंपरा, धौनी आते हैं यहां बार–बार

मां दिउड़ी मंदिर में माता की प्रतिमा

रांची, 30 सितंबर (Udaipur Kiran News) । झारखंड की राजधानी रांची जिले के तमाड़ प्रखंड स्थित प्राचीन मां दिउड़ी मंदिर में वैसे तो हर दिन हजारों श्रद्धालुओं का जमावड़ा रहता है। लेकिन नवरात्र में यहां का अनुष्ठान खास माना जाता है।

मान्यता के अनुसार करीब 200 वर्षों से पारंपरिक बलि देने की प्रथा चली आ रही है। विशेषकर महानवमी के दिन मंदिर प्रांगण में सैकड़ों बकरे–भैंसों की बलि दी जाती है। श्रद्धालु मानते हैं कि इस परंपरा के साथ पूजा-अर्चना करने से मां दुर्गा उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

भक्तों का विश्वास है कि मां दिउड़ी सच्चे मन से की गई प्रार्थना को स्वीकार करती हैं। यही कारण है कि मशहूर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी सहित कई प्रसिद्ध लोग भी यहां आस्था व्यक्त कर चुके हैं।

यह मंदिर नवरात्र और दुर्गा पूजा के दौरान मंदिर में विशेष आस्था का केंद्र बन जाता है। हर कोई यहां आकर मां दिउड़ी की पूजा अर्चना कर मन्नतें मांगता है।

नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना से मंदिर में विशेष पूजा आरंभ होती है। महानवमी के दिन बलि का आयोजन होता है। बलि की परंपरा को लेकर यह मंदिर न सिर्फ झारखंड बल्कि पूरे देश में विशेष पहचान रखता है।

मुख्य पुजारी पंडित मनोज पांडा और पंडित नरसिंह पांडा बताते हैं कि दिवड़ी मंदिर असुर सभ्यता का अनुपम उदाहरण है। मंदिर परिसर में मौजूद विशाल शिलापट्टों से अनुमान लगाया जाता है कि इसका निर्माण 10वीं शताब्दी में असुरों ने किया था। बाद में तमाड़ राज परिवार ने इस मंदिर में माता की विधिवत पूजा-अर्चना शुरू कराई। तभी से यह परंपरा निरंतर जारी है।

मंदिर में स्थापित देवी सोलह भुजाओं वाली शेरावाली मां के रूप में विराजमान हैं। मां के हाथों में शंख, चक्र, त्रिशूल, गदा, तीर, पुष्प, पद्म और महिषासुर का सिर है।

मान्यता है कि मां की जटाओं में मां काली का वास है। यहां की पूजा अद्वितीय है, क्योंकि यह ब्राह्मण और गांव के पाहन दोनों मिलकर करते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में यह मंदिर घने जंगल और झुरमुटों के बीच अवस्थित था। कहा जाता है कि उस समय एक गाय प्रतिदिन यहां आकर अपने आप दूध अर्पित करती थी। चरवाहे ने यह दृश्य देखा तो जानकारी तत्कालीन तमाड़ राजा को दी। राजा ने जंगल की सफाई करवाई और शिलाखंड पर विराजमान माता की मूर्ति को मंदिर रूप दिया। तब से यहां पूजा निरंतर होती आ रही है।

मां दिवड़ी मंदिर आज भी श्रद्धा, परंपरा और आस्था का जीवंत प्रतीक हैं। नवरात्र के दिनों में यहां वातावरण जयकारों और मंत्रोच्चारण से गूंज उठता है और भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर मां के दरबार में मत्था टेकते हैं।

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(Udaipur Kiran) / Manoj Kumar

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