Jammu & Kashmir

उपराज्यपाल ने जम्मू के कन्वेंशन सेंटर में 1975 की आपातकालीन प्रदर्शनी का किया उद्घाटन

जम्मू 25 जून (Udaipur Kiran) । संविधान हत्या दिवस के अवसर पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कन्वेंशन सेंटर, जम्मू में 1975 आपातकाल प्रदर्शनी का उद्घाटन किया।

स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे काले अध्याय की यातनापूर्ण घटनाओं को याद करते हुए उपराज्यपाल ने आपातकाल के पीड़ितों को सम्मानित किया जिन्होंने संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए कई बलिदान दिए।

उपराज्यपाल ने कहा कि मैं आपातकाल को भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे अमानवीय कृत्य मानता हूं और आज ’संविधान हत्या दिवस’ का आयोजन लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक नैतिकता के प्रति प्रतिबद्धता की गहन चिंतन और पुष्टि का अवसर भी है।

उपराज्यपाल ने कहा कि 25 जून 1975 को आपातकाल लागू किए जाने की याद महज ऐतिहासिक स्मरण की तिथि नहीं है बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को कमजोर करने के किसी भी भावी प्रयास का विरोध करने और हमारे लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने तथा हमारे राष्ट्र की अधिक सफलता के लिए पूर्ण समर्पण के साथ काम करने के हमारे संकल्प को मजबूत करने का आह्वान है।

उन्होंने कहा कि हमें उन घटनाओं से सीख लेनी चाहिए और युवा पीढ़ी को भविष्य में ऐसे अत्याचारों को रोकने के लिए तैयार करना चाहिए। यह समाज के हर वर्ग में संवैधानिक मूल्यों के बारे में जागरूकता पैदा करने का भी अवसर है ताकि भविष्य में कोई तानाशाही मानसिकता इसे दोहरा न सके। उन्होंने उन अनगिनत व्यक्तियों, राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और नागरिकों को श्रद्धांजलि दी जिन्होंने सत्तावादी शासन का बहादुरी से विरोध किया और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की।

उपराज्यपाल ने कहा कि भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के उस सबसे काले दौर में देश की आत्मा को कुचला गया, नागरिक स्वतंत्रता पर हमला किया गया, संवैधानिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन किया गया और राष्ट्र निर्माण के सपनों को दफना दिया गया।

मौलिक अधिकारों का निलंबन, प्रेस सेंसरशिप और राजनीतिक विरोधियों और नागरिकों की व्यापक गिरफ्तारी, लोकतांत्रिक सपनों पर सीधा हमला है जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा दिया और जो इसके संविधान में निहित है। उपराज्यपाल ने अपने संबोधन में युवाओं से संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों को बेनकाब करने में अग्रणी भूमिका निभाने का आह्वान किया।

तानाशाही एक मानसिकता है जिसे समझने की जरूरत है। नई पीढ़ी को यह जानने की जरूरत है कि कैसे भारत के लोकतंत्र को 21 महीनों तक बंदी बनाकर रखा गया।

नई पीढ़ी को यह समझने की जरूरत है कि कैसे हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कलंकित किया गया और कैसे कुछ मुट्ठी भर लोगों ने लोकतांत्रिक गणराज्य की आत्मा को बेरहमी से लहूलुहान किया, हमारे लोकतांत्रिक मानदंडों पर हमला किया, भारत के प्राचीन लोकतांत्रिक स्वरूप को चकनाचूर किया और लोकतंत्र के चार स्तंभों को नुकसान पहुंचाया, सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को यह भी बताया जाना चाहिए कि किस तरह हमारे महान नेताओं और सजग नागरिकों ने अदम्य साहस और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अडिग निष्ठा का परिचय दिया।

उपराज्यपाल ने आपातकाल के अपने व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किए और लोगों को संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के बारे में शिक्षित करने पर जोर दिया। लोकतंत्र भारत के स्वभाव में है, अनादि काल से लोकतंत्र हमारी रगों में समाया हुआ है इसीलिए भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है।

मैं उन महान विभूतियों को भी नमन करता हूं जिन्होंने इस राष्ट्र की समृद्ध परंपरा और विरासत को संजोया जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी लोकतांत्रिक मूल्यों को सही मायने में समृद्ध किया।

उन्होंने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि आपातकाल के दौरान लोकतांत्रिक मूल्यों की बहादुरी से रक्षा करने वाले हमारे सत्याग्रहियों के बलिदान और दृढ़ता की गाथा हमें अपने लोकतंत्र को और मजबूत करने और वास्तव में विकसित भारत बनाने के लिए प्रेरित करती रहेगी। आपातकाल के पीड़ित राजनीतिक नेताओं और नागरिकों ने आपातकाल के काले दौर के दौरान उन्हें झेली गई पीड़ाओं के बारे में बताया। उपराज्यपाल ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनके मुद्दों और चिंताओं को संबंधित अधिकारियों के समक्ष उठाया जाएगा।

इस अवसर पर उपराज्यपाल द्वारा ’भारतीय न्याय संहिता’, ’भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ और ’भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ का डोगरी अनुवाद भी जारी किया गया।

(Udaipur Kiran) / बलवान सिंह

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