
प्रयागराज, 14 अगस्त (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को अपने अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए नया तंत्र तैयार करने का निर्देश दिया है, जिसमें पारदर्शिता व योग्यता आधारित चयन और युवा व पहली पीढ़ी के वकीलों को अवसर देने की व्यवस्था हो। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने जुबैदा बेगम व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य निगमों के अधिवक्ता पैनल की नियुक्ति में हकदारी संस्कृति व्याप्त है, जहां योग्यता के बजाय प्रभाव को तरजीह दी जाती है। क्योंकि यूपीएसआरटीसी की ओर से कोर्ट को बताया गया कि श्रम न्यायालय में सम्बंधित अधिवक्ताओं की पेशेवर लापरवाही या अक्षमता के कारण यह याचिका दाखिल हुई। साथ ही उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई है। इस पर कोर्ट ने निगमों में अधिवक्ताओं की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था की कड़ी आलोचना की। कहा कि राज्य निगमों के अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में एक हकदारी संस्कृति जड़ें जमा चुकी हैं, जहां केवल प्रभावशाली परिवारों के उत्तराधिकारियों को ही प्रतिनिधित्व का अवसर दिया जाता है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह टिप्पणी किसी विशेष अधिवक्ता की क्षमता पर नहीं है, बल्कि उस व्यवस्था में आई गिरावट को दर्शाने के लिए है, जहां पद केवल वही हासिल करते हैं जो सत्ता के गलियारों में प्रभाव डाल सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि योग्य अधिवक्ताओं की निष्पक्ष और पारदर्शी नियुक्ति सुशासन के केंद्र में है और यह संवैधानिक कानून के अनुरूप है। कोर्ट ने कुमारी श्रीलेखा विद्यार्थी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का हवाला देते हुए कहा कि राज्य को अपने अधिवक्ताओं की नियुक्ति में निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी चाहिए और यही सिद्धांत यूपीएसआरटीसी जैसे सरकारी निगमों पर भी लागू होता है।
कोर्ट ने ईमानदार और परिश्रमी प्रथम पीढ़ी के वकीलों की अनदेखी पर चिंता जताते हुए कहा कि ऐसे अधिवक्ताओं को शायद ही कभी मौका मिलता है। क्योंकि वे सत्ता में बैठे लोगों के साथ कोई प्रभाव नहीं बना पाते। यह व्यवस्था अन्यायपूर्ण है और कानून द्वारा शासन पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, जिससे न्याय व्यवस्था कमजोर होती है। ऐसी नियुक्ति पद्धतियां, जो योग्यता की उपलब्धियों की उपेक्षा कर वंशानुगत संयोगों को महत्व देती हैं राज्य निगमों में स्वीकार्य नहीं हो सकतीं।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि नियुक्त अधिवक्ताओं द्वारा अपने मामलों को अन्य को सौंपने की प्रवृत्ति गम्भीर है। इस संदर्भ में कोर्ट ने गौरव जैन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य में अपने पूर्व आदेश का हवाला दिया, जिसमें मुख्य सचिव को इस प्रथा के विरुद्ध निर्देश जारी करने को कहा गया था। कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ताओं का चयन केवल निगम के अधिकारियों द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से अदालत की कार्यवाही का गुप्त रूप से अवलोकन करने से किया जा सकता है। इसके बाद उनके पेशेवर कौशल और ईमानदारी पर कड़े जांच-पड़ताल के तंत्र को लागू किया जाए। कोर्ट ने यूपीएसआरटीसी को बोर्ड बैठक बुलाकर पारदर्शिता और योग्यता आधारित नियुक्ति योजना को अंतिम रूप देने और अगली तारीख पर यह योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान उपस्थित यूपीएसआरटीसी के प्रबंध निदेशक मासूम अली सरवर ने आश्वासन दिया कि निगम अधिवक्ताओं की नियुक्ति में बार के सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को अवसर देने का प्रयास करेगा।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
