
– राष्ट्रीय विधि विवि और न्यायिक अकादमी असम के तीसरे दीक्षांत समारोह में शामिल हुए सीएम डॉ. हिमंत बिस्व सरमा
– विवि से स्थानीय मुद्दों से जुड़े रहने और राष्ट्रीय व वैश्विक चर्चाओं के माध्यम से उनका समाधान करने का किया आग्रह
गुवाहाटी, 10 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और न्यायिक अकादमी असम (एनएलयूजेएए) को ऐसे अनुसंधान और नीतिगत कार्यों का नेतृत्व करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे विश्वविद्यालय स्थानीय मुद्दों से जुड़ा रह सके और राष्ट्रीय व वैश्विक चर्चाओं के माध्यम से उनका समाधान कर सके। स्नातक छात्रों से कानूनी पेशे में नैतिकता और सत्यनिष्ठा बनाए रखने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
गुवाहाटी के पांजाबरी स्थित श्रीमंत शंकरदेव अंतरराष्ट्रीय सभागार में एनएलयूजेएए के तीसरे दीक्षांत समारोह में शनिवार शाम काे मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय को अपनी जड़ों और क्षेत्रीय उत्तरदायित्व से कभी मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। पूर्वोत्तर क्षेत्र स्वदेशी अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण, प्रवासन और पहचान से संबंधित अनूठी कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इसलिए, विश्वविद्यालय को अत्याधुनिक अनुसंधान और नीति के माध्यम से स्थानीय समस्याओं का समाधान खोजना चाहिए।
स्नातकों को संबोधित करते हुए कहा कि विधि का आंतरिककरण उन प्रमुख क्षेत्रों में से एक है जो तेजी से आगे बढ़ रहा है। वैश्विक व्यापार, जलवायु परिवर्तन, प्रवासन और सीमा-पार विवादों ने विधि को एक वैश्विक विषय बना दिया है। इसलिए, एनएलयूजेएए को अपने छात्रों को सीमाओं से परे जाकर अंतरराष्ट्रीय विधि प्रणालियों को समझने के लिए तैयार करना चाहिए, साथ ही भारत के संवैधानिक मूल्यों और पूर्वोत्तर की सामाजिक-कानूनी वास्तविकताओं पर दृढ़ता से आधारित रहना चाहिए। विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग, संकाय आदान-प्रदान और वैश्विक मूट कोर्ट में भागीदारी विश्वविद्यालय की शैक्षणिक संस्कृति का केंद्रबिंदु बननी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में लंबित मुकदमों का विशाल बोझ एक गंभीर समस्या है। इसे देखते हुए, विधि व्यवस्था को विवाद समाधान के तेज और वैकल्पिक तरीकों पर अधिकाधिक निर्भर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता, समझौता और पंचनिर्णय किसी भी वकील के लिए आवश्यक उपकरण हैं। इसलिए, उन्होंने विश्वविद्यालय से यह सुनिश्चित करने को कहा कि उसके छात्र मध्यस्थता, समझौता और पंचनिर्णय में अच्छी तरह प्रशिक्षित हों ताकि वे न केवल मुकदमों पर बहस कर सकें, बल्कि विवादों का समाधान भी ऐसे तरीकों से कर सकें जो रिश्तों को बेहतर बनाएं और सामाजिक सद्भाव को मज़बूत करें।
इस अवसर पर डॉ. सरमा ने स्नातक छात्रों से कानूनी पेशे में नैतिकता और सत्यनिष्ठा बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, आज की दुनिया में, जहां व्यावसायिक हित अक्सर पेशेवर मूल्यों पर हावी हो जाते हैं, युवा वकीलों को यह याद रखना चाहिए कि कानून सिर्फ एक पेशा नहीं है, बल्कि यह न्याय और समाज की सेवा का एक आह्वान है। एनएलयूजेएए को नैतिकता, नैदानिक कानूनी प्रशिक्षण और चिंतनशील प्रथाओं पर जाेर देकर इस भावना को पोषित करना जारी रखना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय को कानूनी अनुसंधान और नवाचार का एक सच्चा केंद्र बनने का लक्ष्य रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आने वाले दशक में इसकी विद्वता न्यायिक निर्णयों को प्रभावित करेगी, विधायी सोच को आकार देगी और सार्वजनिक नीति का मार्गदर्शन करेगी। उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्नातक स्तर पर ही अनुसंधान प्रशिक्षण शुरू किया जाना चाहिए और संस्थान को एक ऐसा मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाना चाहिए जो स्थायी मूल्य के ज्ञान के निर्माण में संकाय और छात्रों दोनों का समर्थन करे।
हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें भविष्य के प्रति गहरी आशा है। स्नातकों का ध्यान आकर्षित करते हुए, मुख्यमंत्री ने कहा, स्नातकों के रूप में आप एक ऐसी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो नए भारत की न्याय प्रणाली को आकार देगी, जो अधिक तेज़, निष्पक्ष और समावेशी होगी। विश्वविद्यालय से बाहर निकलते समय, मैं आपसे तीन मार्गदर्शक सिद्धांतों को अपने साथ रखने का आग्रह करता हूँ- विचारों में सत्यनिष्ठा, कार्यों में सहानुभूति और दृढ़ विश्वास में साहस। अपने ज्ञान का उपयोग प्रभुत्व स्थापित करने के लिए नहीं, बल्कि उत्थान के लिए करें, विभाजित करने के लिए नहीं, बल्कि एकजुट करने के लिए करें। एनएलयूजेएए की यात्रा अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ संकल्प और दूरदर्शिता के साथ, साधारण शुरुआत से भी महान उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।
स्वामी विवेकानंद का उल्लेख करते हुए, जिन्होंने कहा था कि युवाओं का सर्वोच्च मूल्य अवर्णनीय और शब्दों से परे है, मुख्यमंत्री ने स्नातकों से अपने भविष्य को आकार देने के लिए उनमें निहित अदम्य ऊर्जा, साहस और अनंत संभावनाओं का दोहन करने का आह्वान किया।
इस अवसर पर उच्चतम न्यायालय के जस्टिस सूर्यकांत, उच्चतम न्यायालय के जस्टिस उज्जल भुइंया, उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह, गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आशुतोष कुमार ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर मुख्य सचिव डॉ. रवि कोटा, एनएलयूजेएए के कुलपति प्रो. केवीएस सरमा, विधिवेत्ता समेत कई अन्य व्यक्ति उपस्थित थे।——————-
(Udaipur Kiran) / अरविन्द राय
