

खड़गपुर, 24 सितम्बर (Udaipur Kiran News) ।
आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों की एक ताज़ा अध्ययन रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि चरम मौसम की घटनाएं न केवल लगातार अधिक तीव्र और बार-बार हो रही हैं, बल्कि इनका असर लोगों पर उनके रहने के क्षेत्र और उनकी आयु के अनुसार बेहद अलग ढंग से पड़ेगा।
संस्थान के प्रवक्ता ने बुधवार को बताया कि इस शोध में विस्तृत जलवायु पूर्वानुमानों को जनसांख्यिकीय आंकड़ों के साथ जोड़कर 1991–2020 की अवधि की तुलना 2021–2050 के संभावित परिदृश्यों से की गई है। इस दौरान ताप लहर (हीट वेव) और शीत लहर (कोल्ड वेव) जैसी चरम घटनाओं के साथ-साथ भारी वर्षा और सूखे जैसी परिस्थितियों के संभावित मेल का अध्ययन किया गया।
सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर राजिव माइती के नेतृत्व में हुई इस शोध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि बाढ़ या सूखे के साथ जुड़ी गर्मी से संबंधित चरम घटनाएं विश्व स्तर पर तेजी से बढ़ेंगी और एशिया व अफ्रीका इसके सबसे बड़े शिकार बनेंगे। खासतौर पर बच्चे और कामकाजी उम्र के लोगों पर प्रभाव दिखेगा।
अध्ययन ने चेतावनी दी है कि उप-सहारा अफ्रीका में तेजी से बढ़ती आबादी के कारण युवाओं पर चरम परिस्थितियों का सबसे अधिक प्रभाव होगा, वहीं यूरोप, उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में बुजुर्गों को सर्वाधिक खतरा रहेगा, खासकर तब जब ताप लहर(हीटवेव) के साथ भारी बारिश की स्थिति बने। शोध में कहा गया, “यूरोप में तो वैश्विक स्तर पर बुजुर्गों के लिए सबसे अधिक जोखिम की आशंका है, जिससे स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक देखभाल प्रणाली पर गंभीर दबाव पड़ेगा।”
अनुमान जताया गया है कि जहां उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में शीतलहरें कम होंगी, वहीं अमेरिका, उत्तरी यूरोप और पूर्वी एशिया में इनकी आवृत्ति बढ़ सकती है। इस प्रकार वहां लोगों को गर्मी की लहरों के साथ-साथ लगातार ठंड के प्रकोप से भी जूझना पड़ेगा।
सबसे अहम निष्कर्ष यह रहा कि विश्व स्तर पर बढ़ते जोखिम का प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है। विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि इन खतरों को और बढ़ा देती है, जबकि यूरोप और एशिया के उन हिस्सों में जहां जनसंख्या स्थिर या घट रही है, वहां केवल जलवायु परिवर्तन ही मुख्य वजह है।
संस्थान के प्रवक्ता ने कहा कि इस शोध की विशेषता इसका “आयु-विशिष्ट दृष्टिकोण” है। अधिकांश अध्ययन जहां पूरी आबादी को एक समूह मानकर चलते हैं, वहीं इस अध्ययन में बच्चों, युवाओं, वयस्कों और बुजुर्गों पर अलग-अलग प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। इससे स्पष्ट हुआ है कि जलवायु चरम की मार असमान है और विभिन्न क्षेत्रों व आयु वर्गों के लिए अलग रणनीतियों की आवश्यकता है।
शोधकर्ताओं ने सरकारों और नीति-निर्माताओं से अपील की है कि बदलते जलवायु परिदृश्य के बीच संवेदनशील समूहों — जैसे उप-सहारा अफ्रीका के बच्चे और यूरोप के बुजुर्ग — की सुरक्षा हेतु क्षेत्र-विशिष्ट और आयु-विशिष्ट अनुकूलन नीतियां तत्काल बनाई जाएं।
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(Udaipur Kiran) / अभिमन्यु गुप्ता
