Uttar Pradesh

भाषा राजनीति का अंग नहीं, संस्कृति की संवाहिका है : प्रो हरिशंकर मिश्र

सम्बोधित करते वक्ता

–उदय नारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला

प्रयागराज, 28 जुलाई (Udaipur Kiran) । हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में सोमवार को उदयनारायण तिवारी समृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत एकेडेमी के गांधी सभागार में ’भारत की बहुभाषिकता और भाषाई सामंजस्य’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

बतौर मुख्य अतिथि प्रो. हरिशंकर मिश्र (पूर्व विभागाध्यक्ष-हिन्दी, लखनऊ विश्वविद्यालय) ने कहा कि ’सभी भारतीय भाषाएं भारतीय संस्कृति के उपज हैं। अतः उनमें व्याकरण जनित भेद होने पर भी आंतरिक एकता विद्यमान है। भाषा राजनीति का अंग नहीं है, वह संस्कृति की संवाहिका है।

प्रो० योगेन्द्र प्रताप सिंह, आचार्य हिन्दी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने कहा कि ’भाषा संस्कृति सम्प्रदाय है, उसे उसी रुप में देखा जा सकता है। एक भी भाषा मरती है तो एक समाज और संस्कृति पैदा करती है। जैसे एक भाषा का अभाव संकट पैदा करता है, वैसे ही एक भाषा का प्रभाव भी संकट पैदा करता है। भाषा के विवाद की जड़ राजनीति की भाषा और भाषा की राजनीति है। भाषाएं आपस में संवाद करती हैं, इसको न समझने के कारण विवाद जन्म लेता है। जैसे भाषा को समझने के लिए ग्रेटिंग थ्योरी की बात की अर्थात किसी भी भाषा को समझने के लिए उसके ऐतिहासिक व समकालिक भाषा को समझना आवश्यक है।

संगोष्ठी का संचालन करते हुए डॉ. मार्तण्ड सिंह, आचार्य हिन्दी, इलाहाबाद डिग्री कालेज ने कहा कि ’भारत की बहुभाषिकता और भाषाई सामंजस्य हिन्दी एक भाषा नहीं कई उपभाषाओं का समूह है, जिसमें समृद्ध साहित्य है। हिन्दी भारत को एकता के सूत्र में पिरोती है। भले ही हमारा रहन-सहन हमारी विचार धाराएं और लोक कथाएं बिल्कुल अभी भी अलग हैं। फिर भी हमारे अन्दर एक जैसी सुगंध है जो हमें एक मिट्टी के बने होने का एहसास कराती है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में गोपालजी पाण्डेय, प्रशासनिक अधिकारी द्वारा आमंत्रित अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी की कोषाध्यक्ष पायल सिंह ने किया। कार्यक्रम में प्रो. रामकिशोर शर्मा, डॉ. विनम्रसेन सिंह, संजय पुरूषार्थी, डॉ. मिथिलेश कुमार त्रिपाठी, डॉ. सुनीता सिंह एवं एम. एस. खॉन सहित शोधार्थी एवं एकेडेमी के कार्मिक उपस्थित रहे।

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(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र

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