Uttar Pradesh

भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान का आधार : प्रो.रामदरश

महाराणा प्रताप महाविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाषाई संदर्भ पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन*
महाराणा प्रताप महाविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाषाई संदर्भ पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन*
महाराणा प्रताप महाविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाषाई संदर्भ पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन*
महाराणा प्रताप महाविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाषाई संदर्भ पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन*

–भाषा और संस्कृति से नाता टूटा तो कागजी औपचारिकता रह जाएगी शिक्षा : प्रो. सदानंद

–भाषा ही विचारों की वाहक और संस्कारों की संवाहक : डॉ अरिमर्दन

गोरखपुर, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । रविवार को महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसड़, गोरखपुर में हिंदी विभाग एवं हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। मुख्य अतिथि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य प्रो. रामदरश राय ने कहा कि बोलियां किसी भी भाषा की जड़ होती हैं, इसलिए यदि बोलियां बचीं तो भाषाएं भी जीवित रह सकेंगी।

उन्होंने कहा कि आज के दौर में वैश्विक संवाद और साझा समझ के लिए एक अंग्रेजी जैसी सार्वभौमिक भाषा आवश्यक है, परंतु अपनी मातृभाषा और बोलियों का संरक्षण भी उतना ही जरूरी है। उन्होंने कहा कि भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान का आधार है। भाषा केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि समाज की आत्मा और राष्ट्र की चेतना का प्राण तत्व है। नई शिक्षा नीति भाषा को केंद्र में रखकर भारतीयता को पुनर्जीवित करने का कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत की विविध भाषाएँ हमारी सांस्कृतिक एकता की सशक्त अभिव्यक्ति हैं, जिनके माध्यम से ज्ञान और परम्परा का संवहन होता है।

समारोह की अध्यक्षता कर रहे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सदानंद प्रसाद गुप्त ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय ज्ञान परम्परा की पुनर्स्थापना का प्रयास है। शिक्षा को जब मातृभाषा से जोड़ा जाएगा, तभी विद्यार्थी अपनी जड़ों से जुड़ेंगे और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होंगे। “राष्ट्रीय शिक्षा नीति भाषायी संदर्भ: चुनौतियां एवं समाधान” पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रो. गुप्त ने कहा कि शिक्षा मात्र नौकरी पाने का साधन नहीं, बल्कि आत्मबोध और राष्ट्रनिर्माण का मार्ग है। मातृभाषा में शिक्षा देना भारतीय अस्मिता का सम्मान है और यही हमारे स्वाभिमान की पहचान बनेगा। उन्होंने चेताया कि यदि भाषा और संस्कृति से नाता टूट गया, तो शिक्षा केवल कागजी औपचारिकता बनकर रह जाएगी। उन्होंने कहा कि मातृभाषा के प्रति सम्मान का अर्थ है अपनी सांस्कृतिक अस्मिता के प्रति निष्ठा।

विशिष्ट अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के डॉ. अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी ने कहा कि भाषा ही विचारों की वाहक और संस्कारों की संवाहक है। जब शिक्षण मातृभाषा में होगा, तभी विद्यार्थियों में मौलिक चिंतन और सृजनात्मकता का विकास संभव है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आत्मनिर्भर भारत के वैचारिक स्तंभ के रूप में परिभाषित किया। साथ ही उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार के आने के बाद भाषाओं के संरक्षण को नई दिशा मिली है। कांग्रेस शासनकाल में तमिल को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था, लेकिन नई शिक्षा नीति ने सभी भारतीय भाषाओं के समान संवर्धन पर बल दिया है। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. आरती सिंह ने दो दिनों तक चलने वाले इस संगोष्ठी का पूर्ण प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि बताया कि दो दिनों तक चले इस राष्ट्रीय विमर्श में देशभर के विद्वानों, शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने शिक्षा नीति के भाषायी आयामों पर गहन विचार-विमर्श किया। उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी भाषा, शिक्षा और राष्ट्रीय चिंतन के अद्वितीय समागम का उदाहरण बनी तथा जिन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर इस दो दिवसीय सारस्वत अनुष्ठान का आयोजन किया गया था उन लक्षण को हमने काफी हद तक पाया भी है। इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, महाराणा प्रताप महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव, बड़ी संख्या में शिक्षकों, विद्यार्थियों की सहभागिता रही।

–दूसरे भी आयोजित हुए दो तकनीकी सत्र

समापन से पूर्व रविवार को राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रातः कालीन सत्र में तृतीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता संत तुलसीदास पी.जी कॉलेज कादीपुर, सुल्तानपुर के संस्कृत विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. सुशील कुमार पांडेय ने की। विषय विशेषज्ञ के रूप में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिंदी विभाग के आचार्य प्रो.प्रत्यूष दुबे ने कहा कि भारत की चेतना का आधार सदैव गुरुकुल परम्परा और मातृभाषा रही है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को भारतीयता के पुनर्जागरण की दिशा में एक सशक्त कदम बताया।

सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सुशील कुमार पांडेय ने कहा कि मातृभाषा में जो गहराई, भाव और सृजनशीलता होती है, वह किसी अन्य भाषा में नहीं मिल सकती। उन्होंने कहा कि मातृभाषा में किया गया मनन, चिंतन और लेखन व्यक्ति की वैचारिक शक्ति को विस्तार देता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीयता की पुनर्स्थापना का एक सराहनीय प्रयास है। संचालन डॉ. अर्चना गुप्ता तथा आभार ज्ञापन डॉ. हनुमान प्रसाद उपाध्याय ने किया। सत्र में डॉ. अभिषेक कुमार मिश्र तथा डॉ. अंगद कुमार सिंह सहित पांच शोधार्थियों ने शोध पत्रों का वाचन किया।

चतुर्थ तकनीकी में विषय प्रवर्तन करते हुए विषय विशेषज्ञ प्रो. अरविंद त्रिपाठी ने कहा कि जब शिक्षा अपनी मिट्टी की भाषा में बोलती है, तो विद्यार्थी केवल ज्ञान नहीं, जीवन के मूल्य भी सीखते हैं। प्रो. त्रिपाठी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को भारत की बौद्धिक स्वाधीनता का दस्तावेज बताते हुए कहा कि यह नीति भारतीय शिक्षण परम्परा, संस्कृति और आधुनिकता का अद्भुत संगम है। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. आद्या प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने प्रारंभिक और प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा को लागू करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि मातृभाषा में शिक्षा विद्यार्थियों को सोचने, समझने और रचनात्मकता विकसित करने की शक्ति देती है। संचालन डॉ. अवंतिका पाठक व आभार ज्ञापन तान्या श्रीवास्तव ने किया। सत्र में डॉ. धनन्जय मणि त्रिपाठी सहित तीन शोधार्थियों ने शोध पत्रों का वाचन किया।

—————

(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय

Most Popular

To Top