
मंडी, 19 अगस्त (Udaipur Kiran) । मानसून सत्र के दौरान हिमाचल प्रदेश विधानसभा में हाल ही में प्रदेश में भूस्खलन और प्राकृतिक आपदाओं से हुई जन-धन हानि पर गहन बहस कर भविष्य के लिए ठोस निर्णय लिए जाएं। हिमालय नीति अभियान समिति के संयोजक गुमान सिंह ने इस बारे में हिमाचल प्रदेश विधानसभा के माननीय अध्यक्ष को पत्र लिखा है। जिसमें कहा गया है कि मॉनसून सत्र में उपरोक्त मुद्दों को लेकर चर्चा हो रही है।
हिमालय नीति अभियान समिति की ओर कुछ सुझाव इस बारे में दिए गए हैं। जिसमें जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जिसमें वैश्विक ताप वूद्धि के चलते हिमालयी क्षेत्र में अनिवार्य वर्षाचक्र,अतिवृष्टि, बादल फटना, एवं भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं पर गहन विचार किया जाना चाहिए। उसी प्रकार हिमाचल की नाजुक पारिस्थितिकी, वहन क्षमता, समुदायों का पारंपरिक ज्ञान,भू- आकृति एवं भूगर्भीय स्थिति को ध्यान में रखे बिना अवैज्ञानिक व अनियोजित ढंग से स्थापित विकास परियोजनाओं का पुनर्मूल्यांकन किया जाए। इसके अलावा सभी बड़े सरकारी एवं निजी निर्माण कार्यों ,सीमेंट कारखानों, खनन गतिविधियों एवं जल विद्युत परियोजनाओं का पुनर्मूल्यांकन किया जाए। प्रदेश में फोरलेन एवं अन्यसड़कों के निर्माण कार्यों पर गंभीर चर्चा हो तथा विधानसभा की एक विशेष समिति द्वारा एनएचआईए के निर्माण कार्यों की जांच सुनिश्चित की जाए।
उन्हाेंने कहा कि आपदा पूर्वानुमान एवं प्रबंधन के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली का विकास किया जाए। इसके अलावा आपदा प्रभावितों के राहत एवं पुनर्वास कार्यों की पारदर्शिता से समीक्षा हो तथा पूर्णरूप से विस्थापित परिवारों के लिए स्पष्ट एवं व्यवहारिक पुनर्वास नीति बनाई जाए। हिमाचल प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में मांग की गई है कि हिमाचल प्रदेश की पारिस्थितिकी एवं पर्यावरणीय संतुलन को सुरक्षित रखते हुए जनता के सुरक्षित भविष्य के लिए हिमालय नीति बनाई जाए। इसमें सम्मानजनक आजिविका सुनिश्चित करने वाले, संरक्षण आधारित एवं पर्यावरण मित्र विकास मॉडल को अपनाया जाए तथा आवश्यक कानूनी प्रावधान भी किए जाएं। वहीं पर जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन के लिए समुदाय आधारित उपाय को बढ़ावा दिया जाए। इसके लिए एफआरए के अंतर्गत सीआरएफ एवं सीएफएफआर अधिकारों की मान्यता को सुदृढ़ कर सामुदायिक वन प्रबंधन एवं संरक्षण सुनिश्चित किया जाए। लचीले बुनियादी ढांचे का विकास और सुरक्षित आवासीय क्षेत्रों की पहचान एवं बसावट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
हिमालय नीति अभियान समिति ने मांग की है कि इस विषय पर निर्णय लेते समय वैज्ञानिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों एवं सामािजक कार्यकर्ताओं से भी परामर्श लिया जाए, ताकि उनकेअनुभव और सझुाव नीतियों में समाहित होकर राज्य को आपदाओं से अधिक सुरक्षित बनाया जा सके।
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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा
