Bihar

केवीके परसौनी ने प्राकृतिक खेती से तैयार लौकी का किया प्रत्यक्षण

प्राकृतिक खेती से तैयार लौकी का प्रत्यक्षण करते

-प्राकृतिक तरीके जीवामृत बनाने की बताया विधि

पूर्वी चंपारण, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) ।जिला के परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र ने प्राकृतिक खेती से तैयार लौकी का प्रत्यक्षण किया है।

इसकी जानकारी देते केन्द्र के मृदा विशेषज्ञ डाॅ आशीष राय ने बताया कि बीते कई वर्षो से कृषि क्षेत्र में रसायनिक उर्वरकों एवं कीट-नाशकों का अत्यधिक प्रयोग ने प्रकृति व मानव स्वास्थ्य के साथ भूमि के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाला है। ऐसे में ‘‘प्राकृतिक खेती’’ जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ऐसी कला या विद्या है जिसका अभ्यास व्यवहार वैज्ञानिक रूप से प्रकृति के साथ समन्वय से किया जाता है।जिसमे न्यूनतम लागत से अधिकतम लाभ की प्राप्ति की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में पशुधन के अध्यवसाय के समन्वय से पारिस्थितिकी तंत्र सुव्यवस्थित और सुदृढ़ होता है। पर्यावरण सुरक्षित जैव उत्पाद यथा जीवामृत एवं बीजामृत, गाय के गोबर, मूत्र व अन्य प्राकृतिक पदार्थों से ही तैयार किये जाते हैं। प्राकृतिक खेती एक फसल उत्पादन पद्धति है जिसमें मूल रूप से स्थानीय प्रक्षेत्र पर उपलब्ध परंपरागत संसाधनों के अच्छी शस्य क्रियाओं के माध्यम से प्रयोग पर बल दिया जाता है जिससे सह अस्तित्व, मृदा स्वास्थ्य पारिस्थितिकी, प्राकृतिक चक्रण, प्राकृतिक सूक्ष्म जीवाणुओं एवं वनस्पतियों, विविधता, सघन उत्पादन एवं बेहतर उत्पादन प्रबंधन तंत्र का विकास होता है।

उन्होंने कहा कि इस पद्धति में बीजों का उपचार देशी गाय के गोबर,मूत्र, चूना, स्वस्थ्य मिट्टी और जल से तैयार बीजामृत से किया जाता है। खेतों में पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिए इस पद्धति में जीवाणु समृद्ध संवर्ध, जीवामृत व धन जीवामृत जो कि देशी गाय के गोबर मूत्र गुड़ बेसन, स्वस्थ्य मिट्टी से तैयार किया जाता है। कीट-व्याधि प्रबंधन विभिन्न जैव फारमुलेशन उत्पाद यथा नीम सीड करनेल एक्सट्रैक्ट, देशी गाय के गोबर, मूत्र, छाछ, तम्बाकू, हरी मिर्च, लहसुन, नीम, करंज, अण्डी, शरीफा व धतूरा आदि की पत्तियों से तैयार फारमुलेशन यथा नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र एवं दशपर्णी के प्रयोग से किया जाता है। इस मौके पर किसानों को जीवामृत बनाना सिखाया गया। जिसमे बताया गया कि जीवामृत एक सूक्ष्मजीवाणु उत्प्रेरक निर्मित घोल है जो मृदा में सूक्ष्मजीवाणुओं की सक्रियता में वृद्धि करता है। साथ ही इसके छिड़काव से पर्णमंडलीय लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं की भी सक्रियता बढ़ती है। यह मूल रुप से लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता के लिए एक प्राईमर की तरह कार्य करता है जो स्थानीय सूक्ष्मजीवाणुओं की संख्या में भी वृद्धि करता है।

-कैसे तैयार करे जीवामृत

देशी गाय का ताजा गोबर – 10 किलोग्राम,देशी गाय का गोमूत्र 10 लीटर,गुड़ 02 किलोग्राम,चने का बेसन 02 किलोग्राम,खेतों की मेड़ों या बड़े वृक्षों की जड़ों की साफ मिट्टी एक मुट्ठी,जल 200 लीटर ले और 10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर, गोमूत्र, गुड़ बेसन, मिट्टी को एक ड्राम में 200 लीटर पानी में अच्छी तरह मिला दें। घोल को फरमेंटेशन के लिए 48 घंटे छाया में रखें। घोल को एक साफ लकड़ी से सुबह और शाम अच्छी तरह मिलाते रहें। इससे तैयार उत्पाद व्यवहार के लिए उपयुक्त है।

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(Udaipur Kiran) / आनंद कुमार

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