
नई दिल्ली, 8 अगस्त (Udaipur Kiran) । मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने शुक्रवार को मानसून सत्र के दौरान विधानसभा में कहा कि दिल्ली की पूर्व सरकार ने अपने कार्यकाल में श्रमिकों के हितों में बड़ी घोषणाएं तो कीं लेकिन उन पर अमल नहीं किया। केजरीवाल सरकार के पास श्रमिक फंड में 5200 करोड़ रुपये की राशि बिना उपयोग के ही पड़ी रही, दूसरी तरफ मजदूर वर्ग सहायता की प्रतीक्षा करते रहे। उन्होंने कहा कि इस मामले को पब्लिक अकाउंट्स कमेटी (पीएसी) को भेजा जाए और दोषी मंत्रियों और अधिकारियों के खिलाफ पर कठोर कार्रवाई की जाए।
मुख्यमंत्री ने यह बातें दिल्ली विधानसभा में भवन व अन्य सन्निर्माण श्रमिकों के कल्याण पर 31 मार्च, 2023 को समाप्त हुए वर्ष के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) का प्रतिवेदन पर बोलते हुए कही। उन्होंने सीएजी के हवाले से पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार के श्रम विरोधी कार्यकलापों का कच्चा चिट्ठा पेश किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्व सरकार की श्रमिक विरोधी मानसिकता का यह हाल रहा कि वह श्रमिकों के पंजीकरण के लिए 25 रुपये और नवीनीकरण के लिए 20 रुपये वसूलती रही, जबकि केंद्र सरकार यह सेवा पूर्णतः नि:शुल्क देती है। इस अतिरिक्त शुल्क के चलते श्रमिकों का वार्षिक डाटा केवल 7 प्रतिशत ही नवीनीकरण हो सका, जबकि केंद्र का डाटा 100 प्रतिशत रिन्यू होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को तब हस्तक्षेप करना पड़ा, जब दिल्ली सरकार के पास श्रमिकों के कल्याण के लिए हजारों करोड़ रुपये की राशि होते हुए भी उसे खर्च नहीं किया गया। न्यायालय ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए यह स्पष्ट कहा कि यदि सरकार के पास मजदूरों को 8000 रुपये की सहायता देने का प्रावधान है, तो केवल 2000 रुपये क्यों दिए गए? शेष 6000 रुपये की राशि किस कारण नहीं दी गई ?
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन योजनाओं का लाभ दिल्ली के लाखों श्रमिकों को मिलना चाहिए था, वह उनके अधिकार के होते हुए भी नहीं मिल पाया। 5200 करोड़ रुपये की राशि श्रमिक फंड में बिना उपयोग के पड़ी रही, जबकि श्रमिक सहायता की प्रतीक्षा करते रहे। उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करते हुए तत्कालीन सरकार को 90,000 श्रमिकों के खातों में 8000 रुपये की राशि डालने का आदेश देना पड़ा।
मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट के तथ्यों के हवाले से बताया कि पूर्व सरकार द्वारा प्रसूतियों, दिव्यांगता, औजारों की खरीद, आवास सहायता, पारिवारिक पेंशन, दुर्घटना मुआवजा, और कौशल प्रशिक्षण जैसी योजनाओं के लिए आवंटित निधि को वर्षों तक या तो खर्च नहीं किया गया या नगण्य उपयोग हुआ। उदाहरण के लिए ‘टूल सहायता योजना’ के अंतर्गत 2018 से 2024 तक किसी भी वर्ष एक भी श्रमिक को 20,000 रुपये की सहायता नहीं दी गई, जबकि यह राशि श्रमिक की आत्मनिर्भरता के लिए महत्वपूर्ण होती।
इसी प्रकार परमानेंट डिसेबिलिटी योजना के अंतर्गत एक लाख रुपये की सहायता भी कई वर्षों तक शून्य रही। चिकित्सा सहायक के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं, जैसे वर्ष 2018, 2019, 2022 और 2024 में किसी भी श्रमिक को इसका लाभ नहीं दिया गया। कोचिंग सहायता, स्किल ट्रेनिंग, यात्रा पास और महिला श्रमिकों को गर्भपात जैसी स्थितियों में सहायता जैसी योजनाएं भी नाममात्र पर ही चलती रहीं।
मुख्यमंत्री ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिलाया कि दिल्ली सरकार श्रमिकों के पंजीकरण के लिए 25 रुपये और नवीनीकरण के लिए 20 रुपये वसूलती रही, जबकि केंद्र सरकार यह सेवा पूर्णतः नि:शुल्क देती है। इस अतिरिक्त शुल्क के चलते श्रमिकों का वार्षिक डाटा केवल 7 प्रतिशत ही नवीनीकरण हो सका, जबकि केंद्र का डाटा 100 प्रतिशत रिन्यू होता है।
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(Udaipur Kiran) / धीरेन्द्र यादव
