
रायपुर 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । छत्तीसगढ़ के वन एवं सहकारिता मंत्री केदार कश्यप ने साेमवार काे कहा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज और पूर्व अध्यक्ष मोहन मरकाम समेत अन्य लोग भी गांधी से मिले तो क्या इस मेल-मुलाकात के दौरान वे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के हक में बात कर पाए या परम्परानुसार गांधी-परिवार की चरण वंदना और चाटुकारिता करके ही लौट आए ?
वन मंत्री कश्यप ने कहा कि भूपेश सरकार के शासनकाल में प्रदेश के आदिवासियों के साथ तो छलावा और धोखाधड़ी का एक पूरा सिलसिला चला, लेकिन बैज और मरकाम मुँह में दही जमाए बैठे रहे। मरकाम को तो फिर भी विधानसभा में कोंडागाँव जिले के डीएमएफ फण्ड पर सवाल उठाने की कीमत अध्यक्ष पद खोकर चुकानी पड़ी, पर अभी हाल ही कांग्रेस की पोलिटिकल अफेयर्स कमेटी की बैठक में सबके सामने अपने नेतृत्व पर किए गए हमले के बाद भी बैज ‘मौनी बाबा’ बने बैठे हैं! श्री कश्यप ने कहा कि छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के हक और कल्याण की सोच और दृष्टि से जिस कांग्रेस का दूर-दूर तक कोई रिश्ता ही नहीं है, उस कांग्रेस के नेता राहुल गांधी आदिवासी नेताओं से मिलने का सिर्फ पाखण्ड ही कर रहे हैं।
मंत्री कश्यप ने राहुल गांधी और प्रदेश के कांग्रेस नेताओं से पूछे सवाल :-
क्या राहुल गांधी से यह प्रश्न पूछने की हिम्मत बैज कर पाए कि जब भूपेश बघेल की सरकार थी, तब प्रदेश से भेजे गए तीन राज्यसभा सांसदों में छत्तीसगढ़ के किसी व्यक्ति को राज्यसभा सांसद क्यों नहीं बनाया गया था? किसी आदिवासी को कांग्रेस ने इस लायक क्यों नहीं समझा?
छत्तीसगढ़ के किसी आदिवासी व्यक्ति को एक राज्यसभा की सीट क्यों नहीं दी? तीनों की तीनों सीटें तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसके इशारे पर बेच दीं और छत्तीसगढ़ का अहित किया?
बैज क्या राहुल गांधी से यह पूछने की हिम्मत कर पाए या फिर दिल्ली गए और ‘सर नमस्ते’ करके आ गए?
यदि राहुल गांधी को सच में आदिवासियों की इतनी ही फिक्र थी तो वह उस समय क्यों चुप्पी साधे रहे, जब छत्तीसगढ़ की पिछली भूपेश सरकार लगातार आदिवासियों के साथ अन्याय कर रही थी?
आदिवासी बहुल इलाकों बस्तर व सरगुजा में धर्मांतरण के चलते आदिवासियों में वर्ग संघर्ष की नौबत लाने वाले अपने तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल को तलब क्यों नहीं किया?
भूपेश बघेल ने बस्तर के कमिश्नर और सुकमा के एसपी की उन चिठिठयों पर धूल क्यों पड़ने दी, जिनमें बस्तर में धर्मांतरण के चलते स्थिति के भयावह होने की बात कही गई थी।
आदिवासी क्षेत्रों में तेन्दूपत्ता संग्राहकों के हितों तक पर भूपेश सरकार ने डाका डाला, उनको दी जाने वाली चरणपादुका तक का वितरण बंद करवा दिया, तब बैज और मरकाम ने चुप्पी क्यों साध रखी थी?
बैज और मरकाम आदिवासी हितों की बात जब भूपेश सरकार के कार्यकाल में नहीं कर पाए तो अब राहुल गांधी के सामने उनकी जुबान खुली होगी, क्या यह सोचना ही बेमानी व हास्यास्पद नहीं है?
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(Udaipur Kiran) / गेवेन्द्र प्रसाद पटेल
