Uttar Pradesh

तुलसीघाट की नागनथैया लीला में कान्हा ने किया कालिया नाग का मान मर्दन

लीला में कालिया नाग का मर्दन कर नृत्य करते कांहा
लीला में कालिया नाग का मर्दन कर नृत्य करते कांहा
लीला में कालिया नाग का मर्दन कर नृत्य करते कांहा

गंगा बनी कालिंदी, अस्सी से निषादराज घाट तक श्रद्धालुओं का जनसैलाब

वाराणसी, 25 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी शनिवार की शाम भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला से सराबोर हो उठी। तुलसीघाट पर आयोजित नागनथैया लीला में गंगा प्रतीक रूप से यमुना (कालिंदी) बन गई और द्वापर युग के गोकुल-वृंदावन जैसा अलौकिक दृश्य साकार हो गया। जब नटखट कान्हा ने विषधर कालिया नाग का मान मर्दन कर उसके फन पर बंशी बजाई, तो घाट पर मौजूद लाखों श्रद्धालु ‘वृंदावन बिहारी लाल की जय’ और ‘हर-हर महादेव’ के जयघोष से गंगा तट गुंजा उठे। करीब पांच सौ साल पुरानी परंपरा के तहत गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा आरंभ की गई इस श्रीकृष्ण लीला का आयोजन इस वर्ष भी अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के तत्वावधान में हुआ। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के अवसर पर दोपहर तीन बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ तुलसीघाट से लेकर निषादराज घाट तक उमड़ पड़ी। घाटों की सीढ़ियां, आस-पास के मकानों की छतें और गंगा में खड़ी नौकाएं भक्तों से भर गईं।

लीला का शुभारंभ श्री संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र की देखरेख में हुआ। लीला में कान्हा अपने सखाओं संग यमुना (गंगा) तट पर कंदुक (गेंद) खेलते दिखाई दिए। तभी गेंद नदी में जा गिरी। संकीर्तन मंडली ने जब ब्रजविलास का दोहा “रोए चले श्रीदामा घर को…” गाया, तो सखा कान्हा से गेंद वापस लाने की जिद करने लगे। शाम 4:40 बजे कान्हा कदंब के वृक्ष की डाल से गेंद लेने के लिए नदी में कूद गए। कुछ देर बाद जब वे नहीं लौटे, तो सखाओं की व्याकुलता बढ़ी। तभी कान्हा कालिया नाग के फन पर नृत्य करते हुए और वेणुवादन करते प्रकट हुए। यह दृश्य जैसे ही सामने आया, श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। ऐसा प्रतीत हुआ मानो कालिया नाग के रूप में प्रदूषण और अहंकार का नाश कर श्रीकृष्ण ने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे दिया हो। इसके उपरांत अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के सदस्य बजड़े पर सवार होकर भगवान की महाआरती में सहभागी बने। इस दौरान काशी नरेश परिवार के उत्तराधिकारी महाराज डॉ. अनंत नारायण सिंह अपने पुत्रों के साथ उपस्थित रहे। महाराज ने भगवान की झांकी का दर्शन किया और परंपरा अनुसार लीला कमेटी के व्यवस्थापक को स्वर्ण मुद्रा (सोने की गिन्नी) भेंट की।

काशी में मान्यता है कि इस दिन स्वयं भगवान शिव भी यह लीला देखने आते हैं। उनके प्रतिनिधि के रूप में काशीराज परिवार की उपस्थिति इस परंपरा की पावनता को और बढ़ा देती है। अस्सीघाट से निषादराज घाट तक गंगा की लहरों पर सवार लाखों श्रद्धालु इस पांच मिनट की दिव्य झांकी के साक्षी बने। लीला में अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के महंत प्रो. विशम्भरनाथ नाथ मिश्र समस्त काशीवासियों की ओर से काशीराज परिवार के वंशज महाराज अनंत नारायण सिंह को सम्मान स्वरूप पुष्प अर्पित करते है।

(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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