
नई दिल्ली, 28 जुलाई (Udaipur Kiran) । उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट के विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर उनको आपत्ति थी तो वह उसी समय कोर्ट क्यों नहीं आए। जस्टिस दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि आप कमेटी के सामने पेश क्यों हुए थे। क्या आपको उम्मीद थी कि कमेटी आपके पक्ष में रिपोर्ट देगी। आप एक संवैधानिक पद धारण करने वाले व्यक्ति हैं। मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।
न्यायालय ने कहा कि जस्टिस वर्मा रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजने का भी विरोध कर रहे हैं, राष्ट्रपति ही जजों को नियुक्त करते हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख हैं तो उन्हें जानकारी देने का विरोध क्यों किया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय के सवालों पर जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वह राष्ट्रपति को जानकारी देने का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन घर से मिले पैसे जस्टिस वर्मा के थे, ऐसा क्यों मान लिया गया। इसकी तो जांच होनी चाहिए थी कि पैसे किसके थे।
याचिका में जस्टिस वर्मा ने आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है। याचिका में तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा संसद से उनके खिलाफ महाभियोग चलाने का आग्रह करने की सिफारिश को भी रद्द करने की मांग की गयी है। जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से 14 मार्च को नकदी मिलने के बाद उच्चतम न्यायालय ने एक जांच कमेटी के गठन का आदेश दिया था। राष्ट्रपति ने जस्टिस वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय ट्रांसफर कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने 22 मार्च को इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच कमेटी के गठन का आदेश दिया था। इस कमेटी में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय के जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे।
(Udaipur Kiran) /संजय—————
(Udaipur Kiran) / अमरेश द्विवेदी
