
जींद, 26 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । शहर के ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब में शनिवार रात गुरू तेग बहादुर का 350 साला शहीदी दिवस को समर्पित महान गुरमत समागम श्रद्धा एवं उल्लास से मनाया गया। समागम में हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान सरदार जगदीश सिंह झींडा व कार्यकारिणी सदस्य सरदार करनैल सिंह के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में सैंकडों श्रद्धालुओं ने गुरू को नमन किया। वहीं गुरमत समागम के आरंभ में 28 श्रद्धालुओं को अमृत छकाया गया।
गुरुघर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह के अनुसार महान गुरमत समागम में सिख जगत के रागी जत्थे, कथा वाचक, ढाढी जत्थे एवं विद्वान संत महापुरुष अपनी अपनी हाजिरी भर कर गुरमत समागम की शोभा का हिस्सा बने। गुरमत समागम में स्थानीय गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब के रागी भाई जसबीर सिंह रमदसिया के रागी जत्थे ने गुरबाणी कीर्तन गायन किया। इसके बाद दरबार साहिब अमृतसर से आए हजूरी रागी भाई हरमनदीप सिंह के रागी जत्थे ने निरोल गुरबाणी कीर्तन करके संगतों का दिल मोह लिया। सिख जगत के प्रसिद्ध कथा वाचक बाबा बंता सिंह ने अपने प्रवचनों में सिख कौम को बहादुर कौम बताते हुए कहा कि हिंद दी चादर गुरु तेग बहादुर साहिब ने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपना शीश कुर्बान कर दिया।
संत बाबा गुरविंदर सिंह मांडी वाले ने अपनी कथा में बताया कि गुरु जी का प्रसिद्ध कथन है बह जिन्हां दी पकरीये। तेग बहादुर बोल्या धर पाये धरम न छोडिय़े। यानी कि अपना सिर दे दो, लेकिन सही काम करने के अपने कर्तव्य में पीछे मत हटो। गुरू तेग बहादुर की बाणी में धार्मिकता, धर्म की रक्षा और मानवीय मूल्यों पर जोर दिया गया है। जिसमें उन्होंने लोगों को हिम्मत, साहस और निडरता से जीवन जीने का संदेश दिया है। संत बाबा राजिंदर सिंह इसराना वाले ने अपने संदेश में संगतों को भजन सिमरन तथा नाम व शब्द का अभ्यास करने पर जोर दिया।
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(Udaipur Kiran) / विजेंद्र मराठा