Uttrakhand

अनियोजित विकास से हिमालय और नदियां संकट में: जल पुरुष राजेंद्र सिंह

उत्तराखंड जल बिरादरी की ओर से आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम

देहरादून, 15 सितंबर (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड जल बिरादरी की ओर से सोमवार को दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में हिमालय आपदा-गंगा और यमुना का विकास या विनाश पर व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित की गई। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि आज नदियों की आजादी,हिमालय की हरियाली दोनों ही विपदा से गुजर रही है। मौजूदा हालात को बनाने में मौजूदा नीतियां ही जिम्मेदार है। हिमालय क्षेत्र में सड़को की चौड़ाई 5-6 मीटर से अधिक नहीं होनी होनी चाहिए।

कार्यशाला में विषय वस्तु को आरंभ करते हुए पर्यावरणविद सुरेश भाई ने कहा कि इस वक्त की आपदा मानवजनित है। हिमालय में चौड़ी सड़कों की आवश्यकता नहीं है। जब से उत्तराखंड, हिमाचल में चौड़ी सड़के और बांध बनने आरंभ हुए है तब से उत्तराखंड आपदा का घर बन गया है। बैठक में मैग्सेसे पुरस्कार विजेता जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि ऐसे ही संपूर्ण हिमालय में अनियोजित विकास के कारण आज हिमालय भारी संकट में आ गया। आज जो हिमालय में आपदा ने घाव दिए है उसके जिम्मेदार भी हम ही लोग है।

उन्होंने कहा कि भगवान शब्द को समझना होगा। हमारे पूर्वजों ने भगवान को प्रकृति से जोड़ा है। इसलिए हम लोग पंचभूत को मानते हैं। सरकारों के भरोसे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण नहीं हो सकता। लोक सहभागिता से ही प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और आपदा से बचाव के कार्य हो सकते है।

पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा कि पानी के टावर हिमालय पर खतरनाक संकट आ चुका है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हमने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की लोक परंपरा भुला दी है। विभिन्न योजनाओं के मार्फत भारी मात्रा में पौधा रोपण हो रहा है,जो बिना प्रयोजन के हो रहा है। अच्छा हो कि वृक्षारोपण आवश्यकता के अनुरूप ही किया जाए। उच्च हिमालय से चौड़ी पत्ती के वृक्ष कम हो रहे है और चीड़ ने इनकी जगह ले ली है। यह भी आपदा आदि को आमंत्रित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जितनी भी योजनाएं या कार्य हो रहे हैं वे सभी अनियोजित तरीके से क्रियान्वित हो रही है। यह भी खतरे पैदा कर रहे है।

पर्यावरण के जानकार प्रो. वीरेंद्र पैन्यूली ने सरकार के इस बयान पर गौर करना होगा कि दिल्ली में 10 प्रतिशत मूल यमुना जल है तो 90 प्रतिशत जल क्या है। इसलिए सरकार के कारण ही इस तरह की अनियोजित विकास की योजनाओं को अंजाम दिया जा रहा है, जिसका परिणाम आपदा के रूप में सामने आ रहा है।

मातृ सदन के स्वामी शिवानंद,पूर्व राज्य मंत्री रविंद्र जुगरान,दिल्ली जल बिरादरी के संजय सिंह,भू वैज्ञानिक प्रो. एस.पी. सती,इतिहासकार डॉ. योगेश धस्माना सहित अन्य वक्ताओं ने वक्ताओं ने हिमालय के संकट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आपदा से हिमालय ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्र भी आपदा प्रभावित है। उत्तराखंड हिमालय सबसे पहले केयरिंग कैपिसिटी पर नीति बनानी होगी। यहां पर पर्यटक और तीर्थ यात्री कब और कितने आए इस पर एक व्यवस्थित नीति बननी चाहिए।

इस दौरान पद्मश्री कल्याण सिंह रावत,उत्तरप्रदेश से आए पर्यावरण कार्यकर्ता संजय राणा, स्तंभकार प्रो.वीरेंद्र पैन्यूली, जनकवि अतुल शर्मा, सर्वोदय कार्यकर्ता रमेश शर्मा, नागरिक मंच के सुभाष नौटियाल, राजस्थान जल बिरादरी के संजय भाई, हिमालय बचाओ आंदोलन के समीर रतूड़ी, ख्यातिलब्ध लोक कलाकार नंदलाल भारती, डॉ. आशालाल, सर्वोदय नेत्री कुसुम रावत, पर्यावरण कार्यकर्ता श्यामलाल, लोक कलाकार कुंदन सिंह चौहान, सामाजिक कार्यकर्ता शैलेन्द्र डेविड सहित अन्य लोग मौजूद रहे।

(Udaipur Kiran) / राजेश कुमार

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