
रांची, 20 सितंबर (Udaipur Kiran) । मुख्य पहान जगलाल पहान ने कहा कि आदिवासी बनने के लिए आदिवासी परिवार में जन्म लेना पड़ता है, न कि किसी आंदोलन के आधार पर आदिवासी बना जा सकता है। आदिवासियों का अपना रूढ़िवादी परंपरा है, जिसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी अनुष्ठान पहान के द्वारा कराए जाते हैं। जबकि कुरमी-कुड़मी समाज जन्म-मृत्यु सहित धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में ब्राह्मण और पंडितों को बुलाकर संस्कार कराते हैं। ऐसे में उन्हें आदिवासी मानना किसी भी रूप में उचित नहीं है। जगलाल पहान शनिवार को आदिवासी बचाओ मोर्चा और विभिन्न संगठनों की ओर से मोरहाबादी मैदान से अल्बर्ट एक्का चौक तक निकाले गए विरोध मार्च के बाद सभा को संबोधित कर रहे थे।
मार्च में केन्द्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए और आदिवासी एकता का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि कई असमानताएं हैं जिससे स्पष्ट पता चलता है कुरमी या कुडमी कभी आदिवासी हो ही नहीं सकते हैं।
मौके पर बबलू मुंडा ने कहा कि कुर्मी और कुड़मी समाज केवल झारखंड में आरक्षण और राजनीतिक लाभ लेने के लिए आदिवासी का दर्जा पाना चाहता है। उन्होंने सवाल उठाया कि रेल टेका, डहर छेका जैसे कार्यक्रमों में राज्य और केंद्र सरकार क्यों मौन है। उन्होंने चेतावनी दी कि किसी भी हाल में कुर्मी-कुड़मी को आदिवासी में शामिल नहीं होने देंगे। यदि आदिवासी समाज को छेड़ा गया, तो भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव, वीर बुधु भगत और तेलंगा खड़िया जैसे शहीदों की परंपरा में बड़ा उलगुलान होगा।
विरोध मार्च और सभा का संचालन महादेव टोप्पो, महासचिव, केन्द्रीय सरना समिति ने किया।
कार्यक्रम में शिवधन मुंडा, रांजन मुंडा, राजेश पहान, अमर मुंडा, मुन्ना हेमरोम, मुकेश मुंडा, आशीष मुंडा, जागेश्वर मुंडा, दरिद्र पहान, मनीष उरांव, लाल महली, अंजन मुंडा, विशाल मंडा, रोहित मुंडा सहित बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के सैकड़ों लोग शामिल थे।
—————
(Udaipur Kiran) / Manoj Kumar
