
जबलपुर, 28 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण के विवाद पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। राज्य सरकार ने इस दौरान कर्मचारियों से जुड़े आंकड़े सीलबंद लिफाफे में पेश किए। कोर्ट ने पाया कि कुछ विभागों में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी पहले से अधिक हैं। इस पर कोर्ट ने सरकार के जवाब और नीति दोनों पर असंतोष जताया।
मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की डिविजनल बेंच ने कहा कि जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि विभागवार आरक्षित वर्ग का वास्तविक प्रतिनिधित्व कितना है, तब तक प्रमोशन पर लगी रोक नहीं हटाई जा सकती। खंडपीठ ने कहा कि सरकार की जवाबी रिपोर्ट अधूरी है। कई विभागों के आंकड़े स्पष्ट नहीं हैं कोर्ट ने सवाल किया कि यदि कुछ विभागों में आरक्षित वर्ग पहले से ही पदों पर पर्याप्त है, तो वहां और प्रमोशन की आवश्यकता क्यों है। अदालत ने कहा कि सरकार को प्रमोशन नीति को लेकर ठोस और संतुलित डेटा देना होगा।
सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने कोर्ट में उपस्थित होकर सरकार का पक्ष रखा। इस दौरान सरकार ने सील बंद लिफाफे में विभाग वार ऑडिट रिपोर्ट पेश की। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि कुछ विभागों में पहले ही आरक्षित वर्ग के कर्मचारी ज्यादा है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के द्वारा पेश किए गए जवाब पर असंतोष जताते हुए प्रमोशन पॉलिसी और आंकड़ों पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए तर्क दिया कि प्रमोशन में आरक्षण समान अवसर के अधिकार (अनुच्छेद 16) का उल्लंघन है। चीफ जस्टिस की बेंच ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह सभी विभागों का एकीकृत चार्ट तैयार कर कोर्ट में पेश करे। इसमें दर्शाया जाए कि प्रत्येक विभाग में आरक्षित वर्ग का वर्तमान प्रतिनिधित्व कितना है, साथ ही कहा गया कि यह कार्य केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं बल्कि सही नियमों पर आधारित गणना होनी चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट नरेश कौशिक पेश हुए,अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को होगी।
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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक