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सशस्त्र बल के जवान को व्हाट्सएप से नहीं सीओ के माध्यम से समन भेजना जरूरी-हाईकोर्ट

काेर्ट

जयपुर,14 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि सशस्त्र बल के जवान को व्हाट्सएप के जरिए भेजा गया समन वैधानिक प्रक्रिया का विकल्प नहीं है। ऐसे मामलों में कमांडिंग ऑफिसर के जरिए समन भेजना जरूरी है। इसके साथ ही अदालत ने मामले में करौली फैमिली कोर्ट की ओर से याचिकाकर्ता सैन्यकर्मी को अपनी पत्नी को मासिक 12 हजार रुपए देने के एक पक्षीय आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस अनूप ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश दीवान सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 5 नियम 28 के तहत सैन्यकर्मियों को कमांडिंग ऑफिसर के जरिए समन भेजना जरूरी होती है। यह प्रक्रिया इसलिए जरूरी मानी गई है, ताकि सैनिकों को अभियानों से मुक्त करने के लिए व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त समय दिया जा सके। इसके साथ ही अदालत ने मामले को पुनः फैमिली कोर्ट को नए सिरे से सुनवाई के लिए भेजते हुए प्रकरण का चार माह में निपटारा करने को कहा है।

याचिका में अधिवक्ता राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता भारतीय सेना में सिपाही के पद पर कार्यरत था और उच्च हिमालयी क्षेत्र में ऑपरेषनल ड्यूटी पर था। इसी दौरान उसकी पत्नी ने भरण पोषण की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत करौली फैमिली कोर्ट में आवेदन किया। जिस पर फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता को तीन बार समन जारी किए, लेकिन उनकी तामील नहीं हो पाई। इसके बाद याचिकाकर्ता के व्हाट्सएप पर समन भेजकर तामील मान ली गई। इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि सशस्त्र बल के जवानों पर समन तामील के लिए सीपीसी में विशेष प्रावधान और प्रक्रिया निर्धारित की गई है, लेकिन इस मामले में इस प्रक्रिया का उपयोग नहीं किया गया। वहीं राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता अमित पूनिया ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता को व्हाट्सएप से समन भेजा था और वह उसे मिल भी गया। इसके बावजूद भी उसने जानबूझकर कोर्ट में उपस्थिति दर्ज नहीं कराई। ऐसे में फैमिली कोर्ट की ओर से दिया एक पक्षीय आदेश सही है।

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(Udaipur Kiran)

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