Madhya Pradesh

आपदाओं में न्यूनतम नुकसान के दृष्टिगत पूर्व सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना जरूरी: मुख्य सचिव जैन

‘स्ट्रेंथेनिंग डिजास्टर रेजिलिएन्स’ पर राज्य स्तरीय राउंडटेबल सेमिनार

– भोपाल में हुआ ‘स्ट्रेंथेनिंग डिजास्टर रेजिलिएन्स’ पर राज्य स्तरीय राउंडटेबल सेमिनार

भोपाल, 15 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच अब यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि हम अपने विकास मॉडल को रेजिलिएंट और सस्टेनेबल बनाएं। आपदाओं से होने वाले जान-माल के नुकसान को न्यूनतम करने के लिए हमें प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि पूर्व-सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना होगा। राज्य शासन का उद्देश्य ऐसा आपदा-रोधी बुनियादी ढांचा विकसित करना है, जो कठिन परिस्थितियों में भी जीवन और आजीविका की निरंतरता बनाए रखे।

मुख्य सचिव जैन बुधवार को भोपाल के अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान, मध्य प्रदेश राज्य नीति आयोग, यूएनडीपी इंडिया और आपदा प्रबंधन संस्थान, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘स्ट्रेंथेनिंग डिजास्टर रेजिलिएन्स’ विषय पर राज्य स्तरीय राउंडटेबल संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ‘मिशन लाइफ’ केवल एक अभियान नहीं, बल्कि जीवनशैली में स्थायी परिवर्तन का प्रयास है।

मुख्य सचिव जैन ने कहा कि नागरिकों से लेकर संस्थानों तक सभी को पर्यावरण-संवेदनशील व्यवहार अपनाना होगा। उन्होंने उल्लेख किया कि शहरी नियोजन ऐसा होना चाहिए जो आपदाओं को रोक सके, न कि नई आपदाओं को जन्म दे। उन्होंने सभी विभागों और स्थानीय निकायों से आग्रह किया कि वे जलवायु और आपदा जोखिमों को अपने नीति-निर्माण और परियोजना योजना का अभिन्न हिस्सा बनाएं।

यूएनडीपी इंडिया की प्रतिनिधि इसाबेल चान ने कहा कि 15वें वित्त आयोग ने आपदा प्रबंधन के लिए राज्यों को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए हैं, जिससे स्थानीय संस्थाओं को भी सशक्त बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में नवोन्मेषी वित्तपोषण, संस्थागत क्षमता-विकास और समुदाय आधारित दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है।

होमगार्ड एवं आपदा प्रबंधन महानिदेशक प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने कहा कि गृह विभाग रेजिलिएंट मध्य प्रदेश की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि राज्य अब प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण से आगे बढ़कर सक्रिय और पूर्व-तैयारी आधारित तंत्र की ओर अग्रसर है। उन्होंने बताया कि आपदा प्रबंधन में होमगार्ड संगठन की भूमिका केवल राहत कार्यों तक सीमित नहीं, बल्कि प्रशिक्षण, जनजागरूकता और क्षमता निर्माण तक विस्तारित हो रही है।

भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के निदेशक डॉ. के. रविचंद्रन, लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के मयंक अग्रवाल, नागालैंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के जॉनी असिन, यूएनडीपी इंडिया के मनीष मोहनदास, आपदा प्रबंधन संस्थान भोपाल के आशीष भार्गव और म्यूनिच आरई के रीजनल हेड मंगेश पाटनकर ने भी संगोष्ठी में अपने विचार साझा किए। वक्ताओं ने आपदा प्रबंधन में डेटा-आधारित नीति-निर्माण, जोखिम आकलन, सामुदायिक सहभागिता और नवाचार आधारित समाधानों की आवश्यकता पर बल दिया।

संस्थान के संचालक ऋषि गर्ग ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान में आपदा जोखिम प्रबंधन केंद्र की स्थापना प्रस्तावित है जो नीति विश्लेषण, प्रशिक्षण और अनुसंधान के माध्यम से राज्य में एकीकृत आपदा प्रबंधन प्रणाली के विकास में सहयोग करेगा। उन्होंने बताया कि संस्थान वर्ष 2047 तक मध्यप्रदेश को ‘डिजास्टर रेजिलिएंट स्टेट’ के रूप में विकसित करने की दिशा में ठोस कदम उठा रहा है।

बताया गया कि राज्य शासन के वरिष्ठ अधिकारी, बीमा क्षेत्र के विशेषज्ञ, अकादमिक संस्थान, विकास सहयोगी संस्थाएं और नीति विशेषज्ञ बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। सभी ने सामूहिक रूप से इस बात पर सहमति व्यक्त की कि आपदा प्रबंधन को शासन की प्राथमिक विकास नीति के रूप में एकीकृत किया जाना चाहिए ताकि मध्यप्रदेश एक संवहनीय और रेजिलिएंट राज्य के रूप में विकसित हो सके।

(Udaipur Kiran) तोमर

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