
धर्मशाला, 06 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । हिमाचल प्रदेश में बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद राजकीय मेडिकल कॉलेज (आरपीजीएमसी) टांडा के बाल रोग विभाग के पीडियाट्रिक एंडोक्राइन क्लिनिक में अब तक 140 ऐसे मरीज पंजीकृत किए जा चुके हैं। इनमें से आठ बच्चों को उन्नत इलाज के तहत इंसुलिन पंप लगाए गए हैं। प्रत्येक पंप की कीमत लगभग तीन लाख रुपये है और संस्थान में इन्हें सफलतापूर्वक इंस्टॉल किया गया।
टांडा मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मिलाप शर्मा ने बताया कि टाइप-1 डायबिटीज बच्चों में होने वाला एक ऑटोइम्यून विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अग्न्याशय की इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं पर हमला कर देती है। इससे शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है और यदि समय पर इलाज न मिले तो गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।
बाल रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. सीमा शर्मा ने जानकारी दी कि चंबा, कुल्लू, मंडी, हमीरपुर, ऊना, कांगड़ा और यहां तक कि पंजाब के पठानकोट से भी 140 बच्चे इस बीमारी के इलाज के लिए टांडा में पंजीकृत हैं।
बाल एंडोक्राइन विशेषज्ञ डॉ. अतुल गुप्ता, जो देश के पहले डीएम इन पीडियाट्रिक एंडोक्राइनोलॉजी हैं (पीजीआईएमईआर चंडीगढ़), ने बताया कि टाइप-1 डायबिटीज बच्चों में छह माह की उम्र से लेकर 18 वर्ष तक हो सकती है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इसका इलाज न किया जाए तो डायबिटिक कीटोएसिडोसिस जैसी जानलेवा स्थिति हो सकती है। उन्होंने कहा कि अब तक इसका इलाज केवल इंसुलिन इंजेक्शन पर आधारित था, लेकिन इंसुलिन पंप की सुविधा मिलने से बच्चों को बार-बार इंजेक्शन लगाने से राहत मिलेगी और रोग नियंत्रण बेहतर होगा।
(Udaipur Kiran) / सतेंद्र धलारिया
