गोरखपुर, 06 सितम्बर (Udaipur Kiran) । गोरखनाथ मंदिर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ की 56वीं एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 11वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित सप्तदिवसीय संगोष्ठी के दूसरे दिन शनिवार को भारत की ज्ञान परम्परा विषय पर देश भर से आए विद्वानों और संतों ने विचार व्यक्त किए।
मुख्य वक्ता महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार के पूर्व कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि भारत की ज्ञान परम्परा हजारों वर्षों पुरानी और विश्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद से लेकर आधुनिक युग तक यह परम्परा मानवता के हित में कार्य करती रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति प्रश्न और संवाद की परम्परा को सम्मान देती है। यही कारण है कि आक्रमणों के बावजूद भारत की सभ्यता जीवित रही।
मुख्य अतिथि गाजियाबाद के दुग्धेश्वरनाथ महादेव मठ के पीठाधीश्वर महंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में प्रकृति, जीव-जंतु और नदियों तक में देवत्व का भाव देखा जाता है। गुरु गोरखनाथ ने षडदर्शन और हठयोग की परम्परा को विकसित कर मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संस्कृत विभाग के आचार्य प्रो. संतोष कुमार शुक्ल ने कहा कि भारत की ज्ञान परम्परा ने पूरी दुनिया को आकर्षित किया। तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय इसका प्रमाण हैं, जहां विदेशी विद्यार्थी भी अध्ययन करने आते थे। काशी से पधारे जगतगुरु विष्णुस्वामी संप्रदायाचार्य संतोषाचार्य सतुआ बाबा महाराज ने कहा कि भारत की ज्ञान परम्परा पूरी दुनिया के सुख और समृद्धि का मार्ग बताती है। हनुमानगढ़ी अयोध्या के महंत राजूदास ने कहा कि श्रीगोरक्षपीठ ने सदैव इस परम्परा को विश्व पटल पर रखा है।
गोरक्षसिद्धगुफा सवाई आगरा से ब्रह्मचारी दासलाल ने कहा वेदमूलक ज्ञान परम्परा जीवन को परम शांति देती है। स्वागत व प्रस्ताविकी में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य डॉ. राम जन्म सिंह ने कहा कि गुरुकुल परम्परा की 14 विद्याओं ने ही भारतीय ज्ञान की नींव रखी। आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, सुश्रुत, चरक और पाणिनि जैसे आचार्यों ने विश्व को गणित, चिकित्सा और भाषा विज्ञान की अमूल्य धरोहर दी।
कार्यक्रम का वैदिक मंगलाचरण डॉ. रंगनाथ त्रिपाठी ने किया, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पाण्डेय ने प्रस्तुत किया और संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह ने किया। इस अवसर पर अयोध्या, चित्रकूट और देवीपाटन सहित अनेक पीठों के महंतगण व संत उपस्थित रहे।
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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय
