नई दिल्ली, 27 जून (Udaipur Kiran) । भारत ने हर बार की तरह इस बार भी सिंधु जल संधि – 1960 के अंतर्गत गठित एक ‘अवैध’ मध्यस्थता न्यायाधिकरण की ओर से जारी ‘पूरक निर्णय’ को सिरे से खारिज कर दिया है। निर्णय किशनगंगा-रतले परियोजनाओं से जुड़ा है।
विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार पाकिस्तान के इशारे पर यह नवीनतम नाटक किया गया है। यह पड़ोसी देश का आतंकवाद के वैश्विक केंद्र के रूप में अपनी भूमिका पर जवाबदेही से बचने का एक और हताश प्रयास है। पाकिस्तान का इस मनगढ़ंत मध्यस्थता तंत्र का सहारा लेना अंतरराष्ट्रीय मंचों को धोखा देने और हेरफेर करने की पुरानी चाल का हिस्सा है।
वक्तव्य में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित रखा गया है। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में भारत ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए ऐसा किया है। संधि तब तक स्थगित रहेगी जब तक सीमा पार आतंक को समर्थन नहीं रोकता। संधि के स्थगित रहने तक भारत किसी भी दायित्व को निभाने के लिए बाध्य नहीं है।
भारत ने कभी भी इस तथाकथित मध्यस्थता न्यायालय के कानून में अस्तित्व को मान्यता नहीं दी है और भारत का रुख हमेशा से यह रहा है कि इस तथाकथित मध्यस्थ निकाय का गठन अपने आप में सिंधु जल संधि का गंभीर उल्लंघन है।
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(Udaipur Kiran) / अनूप शर्मा
