Uttrakhand

शहरीकरण के कारण मनुष्यों और जानवरों के बीच बढ़ा भौतिक अलगाव

दून पुस्तकालय में चर्चा करते विशेषज्ञ

देहरादून, 5 अगस्त (Udaipur Kiran) । सिडार संस्था और दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से मानव-तेंदुए संघर्ष के सामाजिक-पारिस्थितिक और भू-स्थानिक आयाम पर एक गोलमेज बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में वक्ताओं ने मानव और वन्य जीवों के संघर्ष को एक सच्चे सह-अस्तित्व के लिए मानव और जानवरों दोनों की ज़रूरतों, कमज़ोरियों को समझना और उनका समाधान करने पर जोर दिया।

पारिस्थितिकी विज्ञानी प्रो. एसपी सिंह और सिडार के प्रभारी डॉ. विशाल सिंह ने गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत करते हुए कहा कि पारिस्थितिकी अनुप्रयोग और प्रबंधन के बारे में अधिक विचार करती है। हमें जानवरों को भी स्थान और जनसंख्या का एक हिस्सा मानना चाहिए। शहरीकरण के कारण मनुष्यों और जानवरों के बीच भौतिक अलगाव बढ़ रहा है। बैठक में कार्लटन विश्वविद्यालय के प्रो. दीप्तो सरकार ने युगांडा के किबाले राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षण पर प्रस्तुति दी। उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष पर नज़र रखने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करने, संरक्षण की सफलता और यूरोप, अमेरिका के मुकाबले भारत में समुचित वन्य संरक्षण अभ्यास असफल हाेने पर अपनी बात रखी।

यूपीईएस के टाइपक्राफ्ट इनिसिऐटिव एमआर इशान खोसला ने वन से वनवास पर अपना प्रस्तुतिकरण दिया। लोक एवं जनजातीय कलाकारों के साथ सहयोगात्मक कार्य और पशुओं के अस्तित्व पर बात रखी। लोक और आदिवासी कलाकार आमतौर पर जानवरों के साथ काम करते हैं। वनों और वन्य जीवों के सवाल पर उन्होंने कहा कि आजकल वन क्षेत्र लगभग न के बराबर बचा है।

हावर्ड विश्वविद्यालय वाशिंगटन के डॉ. हिमानी नौटियाल ने कहा कि कुछ नए विचार विकसित करने की आवश्यकता है। इसका असर इंसानों और जानवरों, दोनों पर पड़ रहा है। तेंदुओं द्वारा इंसानों को मारना कोई नई घटना नहीं है। सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है, कई बैठकें होती हैं, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकलता, शायद इसलिए कि हम ठीक से सहयोग नहीं कर रहे हैं। किसी छोटी अवधि की परियोजना के बजाय दीर्घकालिक परियोजना पर काम करना अणिक प्रभावी हो सकता है। तेंदुओं के इंसानों पर हमला करने के कारणाें और सफल प्रयासों पर गौर करना जरूरी है।

वक्तओं ने चर्चा के दौरान ग्रामीणों को जानवरों के हमलों से बचने के लिए सुरक्षात्मक ढांचों के साथ-साथ आधुनिक तकनीक उपलब्ध कराने, रोज़गार के अवसर पैदा किए जा सकने, ऐप-आधारित संरक्षण प्रणालियों का उपयोग और प्रचार स्थानीय लोगों को वन्यजीवों के बारे में सचेत करने के लिए किये जाने जैसे अहम सवाल भी रखे। जानवरों के व्यवहार के लिए बहुत सारे नमूनों की आवश्यकता होती है और अब तकनीक भी उपलब्ध है।

बैठक में तेंदुओं के रहस्य को उजागर करने, नई पीढ़ी को किस तरह शिक्षित कर सके, आवास, पूर्व चेतावनी प्रणाली आदि का निर्माण, हॉटस्पॉट की भेद्यता, नागरिक विज्ञान, वन विभाग की क्षमता, सामुदायिक सहयोग जैसे महत्वर्पूण बिन्दुओं पर भी चर्चा की गई। बैठक में बिजू नेगी, डॉ.मालविका चौहान, रेनू सुयाल,निधि सिंह, कुलदीप उनियाल, अंलति भरतरी,डॉ. प्रदीप मेहता, अश्विनी पुरी, पंकज जोशी, अमित भाकुनी आदि ने विचार रखे।

(Udaipur Kiran) / विनोद पोखरियाल

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