Madhya Pradesh

महाकालेश्वर की तीसरी सवारी में सोमवार को 4 जनजातीय एवं लोक नृत्य कलाकारों के दल देंगे प्रस्तुति

महाकालेश्वर  की तीसरी सवारी में  सोमवार को 4 जनजातीय एवं लोक नृत्य कलाकारों के दल देंगे प्रस्तुति

उज्जैन, 27 जुलाई (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में सोमवार को बाबा महाकाल की तीसरी सवारी निकलेगी।

सवारी में 4 जनजातीय एवं लोक नृत्य कलाकारों के दल प्रस्तुति देंगे। प्रतापसिंह डिण्डोरी के नेतृत्व में मध्यप्रदेश का करमा सैला जनजातीय नृत्य , पुष्पलता एवं साथियों द्वारा कर्नाटक का ढोलू कूनीथा जनजातीय नृत्य, सचिन चैधरी, जबलपुर मध्यप्रदेश द्वारा अहिराई लोकनृत्य एवं संजय महाजन द्वारा गणगौर लोकनृत्य की प्रस्तुतियाॅं सम्मिलित है। यह सभी दल श्री महाकालेश्वर भगवान की सवारी के साथ सम्पूर्ण सवारी मार्ग में अपनी प्रस्तुति देते हुए चलेगे।

दलों का परिचय

1. करमा-सैला जनजातीय नृत्य

गोंड़ जनजाति की सबसे प्रमुख नृत्य करमा-सैला है, करमा कर्म की प्रेरणा देने वाला नृत्य है। पूर्वी मध्यप्रदेश डिण्डौरी जिले में कर्म पूजा का उत्सव मनाया जाता है। उसमें करमा नृत्य किया जाता है। वर्षा को छोड़कर सभी ऋतुओं में गोंड जनजाति के लोक करमा-सैला नृत्य करते है, दोनो के बीज गीत रचना की होड़ लग जाती है, जो अत्यन्त मनमोहक होता है।

2. ढोलू कुनिथा जनजातीय नृत्य

कर्नाटक में सैकड़ों लोक कलाएँ सक्रिय हैं, लेकिन कोई भी ढोलू कुनिथा लोक ढोल नृत्य के समकक्ष नहीं है, जो जीवंत और शारीरिक रूप से सशक्त है। यह लोक नृत्य कर्नाटक के कुछ जिलों, खासकर चित्रदुर्ग, बेल्लारी, बीजापुर, बेलगाम और शिमोगा जिलों में प्रचलित है। यह लोक कला जनजातीय वर्गों द्वारा धार्मिक और मांगलिक दोनों ही समारोहों में अधिक प्रचलित है। कोई भी ऐसा समारोह ढोलू कुनिथा की थाप के बिना पूरा नहीं होता।

शिमोगा जिले के सागर तालुकों से उत्पन्न यह ढोलू कुनिथा कला की विविधता और प्रस्तुति के साथ-साथ कलाकारों की वेशभूषा में भी काफी भिन्न है। विशेष रूप से सागर तालुक के कलाकारों ने लगभग तीन महीनों में इस रोमांचक प्रदर्शन कला को रूस के कोने-कोने तक पहुँचाया है, जहाँ कई प्रमुख शहर शामिल हैं। भारत सरकार का कन्नड़ एवं संस्कृति विभाग, कन्नड़ संस्कृति विभाग, दक्षिण क्षेत्र केंद्रीय सांस्कृतिक केंद्र, जनपद अकादमी, कर्नाटक सरकार इस लोक नृत्य के संरक्षक रहे हैं।

3. अहराई नृत्य

भारत के हृदय स्थली मध्यप्रदेश में विभिन्न अंचलो में से एक है- महाकौशल अंचल, जहाँ विभिन्न जातियाँ एवं जनजातियाँ निवास करती हैं। लोकनृत्य अहीर यादव समुदाय का पुरुष प्रधान नृत्य हैं जो कार्तिक मास शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक कि जाता है। परम्परा का निर्वाहन अमावस्या की रात्रि कालीन छाहुर (सरहुल) बांधने, देव जगाने व पूजन के साथ किया जाता है। इस पूजा का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है जब यह प्रतिवर्ष गांव में निवासरत सभी लोगों की खुशहाली, सुख-समृध्दि व बुरी बलाय से बचाने की कामना के साथ की जाती है।

परीबा के दिन यादव वंशज ग्वालों के द्वारा घरो में गोवर्धन पर्वत की आकृति तैयार कर, गाय-बैल (पशुधन) का रंग-रोगन कर सजाया जाता है और खेर एवं देव स्थान में ग्राम देवता कुल देवता (गैरय्या महाराज) की पूजा करने के बाव खिरखा खिलाया जाता है। समूह में गायकों के द्वारा दिवारी, दोहे, कहावतें गायी जाती है, व नर्तक दल पारम्परिक परिधान धारण कर भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रदर्शन करते है। साथ ही घूम-घूमकर गोलाकार आकृति व सुंदर पद संचालन के साथ लाठी, लुहांगी, फरसा, इत्यादि औजार से सुसज्जित होकर नृत्य करते हैं।

इस नृत्य की एक विशेषता यह भी है कि प्रतिवर्ष गांव में आयोजित चण्डी मढ़ई मेले के लिए चण्डी को विवाहने सुपारी दी जाती है। उसके बाद चण्डी मढ़ई मेले में चण्डी विवाहने के बाद नर्तक दल पूरे मेले में घूम-घूमकर नृत्य करते है व घर-घर जा कर झूमकर नृत्य करते हैं।

इसकी मुख्य वेशभूषा धोती-कुर्ता, झूल (बाना), घुंघरा, मोर पंख की कलगी, तोड़े, कड़ा, साफा धारण करते हैं। नृत्य के प्रमुख वाद्ययंत्र मृदंग, ढोलक, कसांवरी (कांसे की थाली), टिमकी, झांझ, मंजीरा, ढोल, बांसुरी इत्यादि।

4. गणगौर लोक नृत्य

मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल में गणगौर का पर्व बहुत ही हर्षोल्लास व श्रद्धा भाव से मनाया जाता है शिव और पार्वती के रूप में धनियर राजा और रनुबाई की पूजा अर्चना की जाती है माता के मूर्ति नुमा रथ सजाए जाते हैं इन रथों को आंगन में रखकर महिलाएं झालरिया नृत्य करती है तथा पुरुष और महिलाए सम्मिलित रूप से इन रथों को सिर पर रखकर झेला नृत्य करते हैं झालरिया गीत, ढोल और थाली की थाप पर समूचा निमाड़ अंचल झूम उठता है।

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(Udaipur Kiran) / ललित ज्‍वेल

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