
भिंड, 28 जुलाई (Udaipur Kiran) । झूला तो पड़ गए अमुआ की डाल पे जी, चलो री सहेली, झूला तो झूलें बाग में जी। एसे सावन के मलहार गीतो से “साराजहां” गूँजता था, जिनका अब प्रायोजित कायक्रमो तक सीमित हो जाना समग्र समाज के लिए चिंतनीय है,सावन तो आता है पर अपने पुराने रंग नहीं बिखेर पाता। जिस सावन के आते ही नववधु ससुराल से मायके पहुंच जाती थी। अब वैसा सावन नहीं दिखाई देता है। झूले की परम्परा लुप्त होने के साथ ही सावन की खुशबू अब अहसास नहीं कराती है। सावन के झूलों के साथ लोक संगीत भी विलुप्ति के कगार पर है।
आधुनिकता की दौड़ में प्रकृति के संग झूला झूलने की परंपरा समाप्त होती दिखती है।
डिजिटल सोसल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के चलते अब इस उत्सव का रंग फीका पड़ने लगा है फेसबूक व वाट्सअप युग के चलते सामूहिकता के स्थान पर लोगो मे एकाकी प्रवृति बढ़ने से धरातल पर उत्सव की रौनकता कम दिखाई देने लगी है वेसे तो पूरा श्रावण मास प्रकृति से जुड़े उत्सवो से भरा है, हरियाली अमावश्या और हरियाली तीज से पेड़ो पर झूला हिडोरे गिर जाते थे पर अब ग्रामीण इलाके मे श्रावण मास मे सन्नाटा नजर आता है गाव की बुजुर्ग महिलाए बताती है कि पहले श्रावण मास के प्रारम्भ मे ही बहिन बेटी और बुआ अपने मायके वालो के बुलावे पर आ जाती थी, लेकिन अब किसी के पास समय नही है नव विवाहित युवतियां प्रथम सावन में मायके आकर इस हरियाली तीज में सम्मिलित होने की परम्परा है। इन्दिरा भारद्वाज बताती है कि हरियाली तीज के दिन सुहागन स्त्रियां हरे रंग का श्रृंगार करती हैं। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी शामिल है। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी जरूर लगाती है।
महिला सतसंग मण्डल की सयोजिका महिमा चौहान का कहना है कि हिन्दुत्व का हर पर्व है प्रकृति से जुड़ने का माध्यम है उनमे ही एक हरियाली तीज उत्सव है जो श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी चादर से आच्छादित होती हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है।
आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। जनसामान्य से जुड़े यह उत्सवो को सरकारी स्तर पर मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद व स्वयम सेवी संस्था भारत विकास परिसद व महिला सत्संग मण्डल जेसे कुछ संगठन ने हरियाली तीज के उत्सव के अस्तित्व के सरक्षण के प्रयास सराहनीय हैमध्यप्रदेश जन अभियान परिषद ने जिले भर मे हरियाली तीज पर नवांकुर सखियो ने हरियाली कलस यात्रा के माध्यम से पर्यावरण संदेश दिया है तो भारत विकास परिषद ने भी एक समूहिक आयोजन किया,यह अच्छी बात है पर जनसमान्य का इन उत्सवो से दूरी बनाना सनातन संस्कृति के भविष्य की दृष्टि से सुखद नही है।
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(Udaipur Kiran) / Anil Sharma
