Jammu & Kashmir

जम्मू में दूर्वाष्टमी (द्रूवड़ी) व्रत एवं राधाष्टमी 31 अगस्त रविवार को मनाया जायेगा

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जम्मू, 28 अगस्त (Udaipur Kiran) । जम्मू संभाग में विशेष महत्व रखने वाला दूर्वाष्टमी (द्रूवड़ी) का व्रत इस वर्ष 31 अगस्त, रविवार को है। जम्मू में इस व्रत को द्रूवड़ी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत वंशवृद्धि, संतान की मंगलकामना एवं संतान सुख के लिए किया जाता है। श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि द्रूवड़ी का पर्व जम्मू में पारंपरिक हर्षोल्लास और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। रविवार 31 अगस्त को प्रातः 11:53 बजे तक भद्रा काल रहेगा। धर्मग्रंथों के अनुसार जब चंद्रमा मेष, वृष, मिथुन अथवा वृश्चिक राशि में रहता है तो भद्रा स्वर्गलोक की होती है। स्वर्गलोक की भद्रा में शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस बार भद्रा वृश्चिक राशि में रहेगी, अतः दूर्वाष्टमी (द्रूवड़ी) पूजन पर भद्रा का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

द्रूवड़ी व्रत के दिन महिलाएं और नवविवाहिताएं यह व्रत करती हैं तथा सरोवर अथवा बहते जल वाले स्थानों पर जाकर पूजन करती हैं और संतान एवं परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस अवसर पर पारंपरिक गीत भी गाए जाते हैं। पूजन सामग्री में मीठे रोट, दूर्वा, अंकुरित मोठ, मूँग, चने, फल एवं वस्त्र आदि चढ़ाए जाते हैं। पूजन के समय छोटे बच्चों को पूजन स्थल की परिक्रमा भी करवाई जाती है। इस व्रत में श्रीगणेश जी एवं श्रीलक्ष्मीनारायण का पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि दूर्वाष्टमी का व्रत करने से सुख, सौभाग्य और दूर्वा के अंकुरों के समान कुल की वृद्धि होती है।

यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों का पर्व है। इस दिन अंकुरित मोठ, मूँग तथा चने का भोजन में उपयोग किया जाता है और इन्हें प्रसाद स्वरूप अर्पित किया जाता है। दिनभर उपवास रखकर रात्रि में पूजन के उपरांत दूर्वाष्टमी की कथा सुनकर भोजन किया जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार समुद्र-मंथन के समय भगवान श्रीविष्णु ने मन्दराचल पर्वत को अपनी जंघा पर धारण किया था। मन्दराचल की रगड़ से भगवान के असंख्य रोम समुद्र में गिर पड़े। वे रोम लहरों के साथ भूमि पर आकर दूर्वा के रूप में उत्पन्न हुए। बाद में इसी दूर्वा पर अमृत-कलश रखा गया। उस समय अमृत की कुछ बूँदें उस पर गिर गईं, जिससे दूर्वा अजर-अमर हो गई। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन देवताओं ने गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल एवं अक्षत से दूर्वा का पूजन किया था। तभी से हर वर्ष इस दिन दूर्वाष्टमी व्रत रखने की परंपरा है।

(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा

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