
कानपुर, 12 सितम्बर (Udaipur Kiran) । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी कानपुर) के शोधकर्ताओं ने एक नया एंटीबॉडी आधारित बायोसेंसर विकसित किया है, जो जीवित कोशिकाओं में जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर्स की सक्रियता की निगरानी कर सकता है। मानव कोशिकाओं में सबसे बड़ी रिसेप्टर प्रोटीन फैमिली है और एक-तिहाई से अधिक क्लिनिकल दवाएं इन्हीं को लक्षित करती हैं।
यह शोध कार्य प्रोफेसर अरुण के शुक्ला के नेतृत्व में किया गया, जिनकी टीम पिछले दस वर्षों से जीवविज्ञान पर काम कर रही है। शरीर में विभिन्न प्रकार के संकेतों को नियंत्रित करने के कारण नई दवाएं और उपचार विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह नया बायोसेंसर जीवित कोशिकाओं में रिसेप्टर्स की सक्रियता को मॉनिटर करने की तकनीकी चुनौती को दूर करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है।
GPCRs तब तक निष्क्रिय रहते हैं जब तक उन्हें प्रकाश, हार्मोन या छोटे अणुओं जैसे संकेत नहीं मिलते। ये संकेत उन्हें सक्रिय करते हैं और यह प्रक्रिया कोशिका झिल्ली के आर-पार संकेतों को भेजने का काम करती है, जिसे सिग्नल ट्रांसडक्शन कहा जाता है। यह प्रक्रिया मानव शरीर की कार्यप्रणाली के लिए अत्यंत आवश्यक है। हालांकि, इसे जीवित कोशिकाओं में वास्तविक समय (रियल टाइम) में देखना काफी कठिन था।
इस समस्या को हल करने के लिए, आईआईटी कानपुर की टीम ने एक इंजीनियर किया हुआ एंटीबॉडी (नैनोबॉडी) सेंसर विकसित किया है, जो केवल तब GPCRs से जुड़ता है जब वे सक्रिय होते हैं और अरेस्टिन नामक प्रोटीन के साथ सम्पर्क में आते हैं। जब रिसेप्टर्स अपने लिगैंड्स द्वारा सक्रिय होते हैं, तो यह नैनोबॉडी पास आकर एक एंजाइम की प्रतिक्रिया को ट्रिगर करता है, जिससे एक प्रकाशीय संकेत उत्पन्न होता है, जिसे मापा जा सकता है।
इस अध्ययन के प्रमुख प्रोफेसर अरुण के शुक्ला ने शुक्रवार को कहा कि इस बायोसेंसर की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें GPCRs को किसी भी तरह से संशोधित करने की जरूरत नहीं होती, फिर भी यह उनके सक्रिय होने की जानकारी दे सकता है। यह रोगों की स्थिति में इन रिसेप्टर्स की इमेजिंग की सम्भावनाओं को खोलता है।
यह प्रोजेक्ट चेक गणराज्य के प्राग स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्गेनिक केमिस्ट्री एंड बायोकैमिस्ट्री के प्रोफेसर जोसेफ लाजर की प्रयोगशाला के साथ सहयोग में किया गया था। इसे भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वित्तपोषित एक भारत-चेक संयुक्त अनुसंधान पहल के तहत समर्थन मिला था। इस शोध को प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पीएनएएस), यूएसए नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप
