
संदेह का लाभ मिला, कोर्ट ने कहा-नाता प्रथा शादी में दहेज का लेन-देन नहीं होता
जोधपुर, 29 सितम्बर (Udaipur Kiran News) । दहेज प्रताडऩा और स्त्रीधन हड़पने के करीब दस साल पुराने मामले में कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आरोपित को दोषमुक्त करार दिया। ये फैसला विशेष अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (पीसीपीएनडीटी एक्ट) जोधपुर महानगर का आया है।
कोर्ट ने आरोपित पति पंचेटिया, पाली हाल विजय नगर, कलेवाड़ी, पुणे निवासी भूपेंद्र को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त घोषित कर दिया। पीठासीन अधिकारी लोचन खिडिय़ा देवल की कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि नाता-प्रथा में दहेज या महंगे उपहारों का लेन-देन आमतौर पर नहीं होता। पुलिस अधिकारी, भाई और परिवादिया ने भी यही बात स्वीकार की है। दरअसल परिवादिया मंजू का विवाह पहले कुलदीप के साथ हुआ था, लेकिन दोनों का वर्ष 2008 में तलाक हो गया। इसके बाद मंजू के पिता ने तलाकशुदा भूपेन्द्र से बेटी का विवाह 12 दिसंबर 2010 को नाता-प्रथा के आधार पर कराया। शादी के दौरान परिवार ने नकद, गहने, घरेलू सामान भूपेन्द्र को दिए थे। शादी के बाद मंजू पुणे ससुराल चली गई। कुछ महीने ठीक रहने के बाद मंजू ने आरोप लगाए कि पति व सास-ससुर ने दहेज की अतिरिक्त मांग की और मानसिक व शारीरिक प्रताडऩा दी। आरोप है कि लगातार दहेज की मांग पूरी न होने पर मारपीट भी हुई। जून 2014 में भूपेन्द्र ने मंजू को इलाज के लिए जोधपुर छोड़ दिया और सामान वापसी के लिए मना कर दिया।
थाने में दहेज प्रताडऩा का केस दर्ज
इसके बाद मंजू ने जनवरी 2015 में महिला थाना पश्चिम जोधपुर में भूपेंद्र और अन्य के खिलाफ दहेज प्रताडऩा का केस दर्ज कराया। जांच व ट्रायल के दौरान अभियोजन पक्ष ने मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए, लेकिन अधिकांश आरोपों व दावे स्वतंत्र गवाहों या डॉक्टर, मेडिकल प्रमाण, बिलों एवं स्पष्ट जब्ती के अभाव में पुष्टि नहीं हो सकी। खुद पीडि़ता ने चार साल ससुराल में रहते हुए पुलिस में रिपोर्ट या मेडिकल नहीं कराया, न ही सामान के पक्के बिल पेश किए। गवाहों की अधिकतर बातें भी सुनी-सुनाई या संदेहास्पद पाई गई।
बयानों में ही दिखाई दिया विरोधाभास
विशेष मजिस्ट्रेट लोचन खिडिय़ा देवल ने पाया कि अभियोजन पक्ष पर लगाए गए आरोपों को संशय से परे प्रमाणित नहीं कर सका और प्रमुख साक्ष्य गवाह-परिवादिया मंजू और उसके भाई राजेंद्र कुमार के बयानों में कई विरोधाभास मिले। कोर्ट में यह सामने आया कि: अभियोजन के गवाहों मंजू, उसके भाई व महिला थाना अधिकारी के बयान में बड़े विरोधाभास थे। सीधे मारपीट या दहेज मांग की घटना का कोई स्वतंत्र या प्रत्यक्ष गवाह नहीं था। मंजू ने खुद स्वीकार किया कि ससुराल में चार साल तक रही, लेकिन कभी पुलिस रिपोर्ट या मेडिकल नहीं कराया। दिए गए दहेज या स्त्रीधन का कोई पक्का बिल, फोटोग्राफ, या मेडिकल दस्तावेज नहीं पेश किए गए। अधिकांश शिकायतें व मुकदमा पति द्वारा तलाक का मुकदमा दायर किए जाने के बाद ही दायर हुए। जांच अधिकारी ने यह भी माना कि नाता-प्रथा में दहेज देने का चलन नहीं होता। इन्हीं तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए भूपेंद्र को दोनों धाराओं में दोषमुक्त कर दिया।
(Udaipur Kiran) / सतीश
