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आरएसी कांस्टेबल सुसाइड केस में आरोपी पति बरी

jodhpur

जोधपुर, 28 अगस्त (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने आरएसी प्रथम बटालियन की महिला कांस्टेबल गीतादेवी सुसाइड मामले में फैसला सुनाते हुए आरोपी पति हरिभजन राम को बरी कर दिया है। जस्टिस संदीप शाह की कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केस में पुलिस इन्वेस्टिगेशन में आत्महत्या के लिए उकसाना साबित करने में पूरी तरह असफल रही है।

मामला सात सितंबर 2018 की रात का है। मंडोर पुलिस थाने में दर्ज करवाई गई एफआईआर के अनुसार मंडोर स्थित आरएसी प्रथम बटालियन में कांस्टेबल के रूप में कार्यरत गीतादेवी ने अपने बयान में कहा था कि उसका पति हरिभजन राम उसे मानसिक रूप से प्रताडि़त करता था और लगभग दस साल से उसे छोड़ चुका था। पांच सितंबर को जब वह कोर्ट गई थी, तो उसके पति ने उसका अपमान किया और गालियां दीं। इसी मानसिक तनाव के कारण उसने सात सितंबर को खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा ली थी। घटना के 14 दिन बाद 20 सितंबर 2018 को गीतादेवी की हॉस्पिटल में उपचार के दौरान मौत हो गई थी। मृतका के भाई दिनेश, पिता मोहन राम, मां मोहनी देवी और बेटे जयप्रकाश के बयानों में भी यही कहा गया था कि 5 सितंबर को कोर्ट में हरिभजन राम के वकील ने गीतादेवी से असहज सवाल पूछे थे, जिससे वह मानसिक रूप से परेशान हो गई थी। सभी ने यह स्वीकार किया था कि हरिभजन राम और गीता देवी 2006-2007 से अलग रह रहे थे।

जस्टिस संदीप शाह ने अपने फैसले में धारा 306 और 107 आईपीसी के प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा कि आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरणा सिद्ध करने के लिए यह दिखाना जरूरी है कि आरोपी ने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया हो या जानबूझकर ऐसा कोई कार्य किया हो जिससे आत्महत्या को बढ़ावा मिला हो। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के महेंद्र आवासे बनाम मध्य प्रदेश राज्य, अय्यूब बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और मंगल सिंह बनाम राजस्थान राज्य के फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि गुस्से में कहे गए शब्द या सामान्य झगड़े के दौरान बोले गए वाक्य आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरणा नहीं माने जा सकते। कोर्ट ने अपने फैसले में यह निष्कर्ष निकाला कि खराब इन्वेस्टिगेशन के साथ ट्रायल चलाना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और आरोपी के साथ गंभीर अन्याय होगा। इसमें मुख्य रूप से सात खामियों का उल्लेख किया गया।

(Udaipur Kiran) / सतीश

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