Haryana

फरीदाबाद: दिव्यांग सीए को अर्धनग्न कर वायरल करने वाले पुलिसकर्मियों पर मानवाधिकार आयोग सख्त

फरीदाबाद, 23 जुलाई (Udaipur Kiran) । मानवाधिकार उल्लंघन के एक गंभीर मामले में हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने फरीदाबाद पुलिस को फटकार लगाते हुए दिव्यांग चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) को 50 हजार रुपये मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। यह फैसला वर्ष 2021 की उस शर्मनाक घटना से जुड़ा है, जिसमें सारन थाना पुलिस में तैनात दो पुलिसकर्मियों ने एक शारीरिक रूप से दिव्यांग युवक को न केवल थाने में अर्धनग्न किया, बल्कि उसकी तस्वीरें खींचकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी थीं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार 24 मई 2021 को सारन थाना में तैनात महिला एएसआई जगवती और सिपाही राकेश कुमार ने एक दिव्यांग युवक अनिल ठाकुर को हिरासत में लिया था। हिरासत के दौरान थाने में ही दोनों पुलिसकर्मियों ने अनिल को अर्धनग्न कर दिया और उसकी तस्वीरें खींची गईं, जो बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। इस घोर मानवाधिकार हनन की शिकार दिव्यांग युवक ने जब न्याय की गुहार लगाई, तो उसे लंबे समय तक पुलिस विभाग से सिर्फ टालमटोल ही मिला। आखिरकार, अनिल ठाकुर ने मामले की शिकायत हरियाणा मानवाधिकार आयोग, चंडीगढ़ में दर्ज कराई।

मामले की सुनवाई करते हुए आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा, सदस्य कुलदीप जैन और दीप भाटिया की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह घटना केवल व्यक्ति के आत्मसम्मान पर नहीं, बल्कि उसकी निजता, गरिमा और मानसिक शांति पर भी सीधा हमला है। आयोग ने टिप्पणी की कि यह कृत्य न केवल पुलिस आचरण के नियमों के खिलाफ है, बल्कि एक दिव्यांग व्यक्ति के अधिकारों का घोर उल्लंघन है, जिसे किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता। मानवाधिकार आयोग के सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी डॉ. पुनीत अरोड़ा के अनुसार, फरीदाबाद पुलिस बीते चार वर्षों से इस मामले में अपने अधिकारियों का बचाव करती रही और सीसीटीवी फुटेज तक उपलब्ध नहीं कराई गई। इसके बावजूद आयोग ने अपनी जांच शाखा के माध्यम से गहन जांच कर सच्चाई को सामने लाया। जांच में यह साबित हुआ कि पीड़ित के साथ अमानवीय और असंवैधानिक व्यवहार हुआ है।

हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने गृह विभाग को निर्देश दिए हैं कि पीड़ित अनिल ठाकुर को 50 हजार रुपये की मुआवजा राशि दी जाए। यह पूरी राशि संबंधित दोनों पुलिसकर्मियों से आधी-आधी वसूली के रूप में ली जाएगी। यह फैसला एक बार फिर यह साबित करता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और जिन लोगों पर नागरिकों की रक्षा का जिम्मा है, अगर वही संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन करें, तो उन्हें जवाबदेह ठहराया जाएगा। यह मामला न केवल फरीदाबाद, बल्कि पूरे हरियाणा पुलिस प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि किसी भी स्तर पर अधिकारों का दुरुपयोग करने वालों को संरक्षण नहीं मिलेगा। पीड़ित को चार साल बाद भले ही न्याय मिला हो, लेकिन यह निर्णय आने वाले समय में अन्य पीड़ितों के लिए एक मिसाल बन सकता है।

(Udaipur Kiran) / गुरुदत्त गर्ग

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