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टालिगंज विवाद पर कलकत्ता हाई कोर्ट की सख्ती : इतना दुस्साहस होता कैसे है –जस्टिस अमृता सिन्हा का राज्य सरकार को फटकार

कलकत्ता हाई कोर्ट

कोलकाता, 23 जुलाई (Udaipur Kiran) । टॉलीगंज स्टूडियोपाड़ा में फिल्म निर्देशकों और फेडरेशन के बीच चले आ रहे विवाद पर सुनवाई के दौरान कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की भूमिका पर कड़ी नाराजगी जताई है। न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने बुधवार को मामले में राज्य के सूचना एवं सांस्कृतिक मामलों के सचिव शांतनु बसु के रवैये पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इतना दुस्साहस होता कैसे है?

यह मामला टॉलीवुड के कुछ निर्देशकों की उस याचिका से जुड़ा है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके काम में व्यवधान डाला जा रहा है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिन्हा ने आठ जुलाई को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि सभी संबंधित पक्षों को बुलाकर 16 जुलाई को बैठक की जाए और हर पक्ष को अपनी बात रखने का अवसर दिया जाए। यह बैठक सचिव की अध्यक्षता में होनी थी।

हालांकि, अदालत में यह बात सामने आई कि 16 जुलाई को कोलकाता के रविंद्र सदन में आयोजित बैठक में जहां 11 निर्देशक मौजूद थे, वहीं फेडरेशन के अध्यक्ष स्वरूप विश्वास अनुपस्थित थे। इससे बैठक अधूरी मानी गई। इतना ही नहीं, सचिव द्वारा फेडरेशन से अलग से चर्चा किए जाने की बात पर न्यायमूर्ति सिन्हा ने गहरी नाराजगी जताई।

राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिंद्य मित्रा ने अदालत में पक्ष रखा, लेकिन न्यायमूर्ति सिन्हा ने तीखे स्वर में सवाल उठाए –किसने सचिव को अलग से बैठक करने को कहा था? नोटिस में तो स्पष्ट लिखा है कि सभी पक्षों को एक साथ बुलाना है। फिर उन्होंने एक पक्ष को अलग से क्यों बुलाया? ज़रूर इसके पीछे कुछ है। कुछ चल रहा है।

न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि सचिव की भूमिका कई सवाल खड़े कर रही है। किसी बात को छिपाने के लिए एक वरिष्ठ वकील को सामने खड़ा कर ‘मैनेज’ करने की कोशिश हो रही है। मुझे सब पता है। मेरा मुंह मत खुलवाइए। सचिव ने जो नोटिस दिया और कोर्ट में जो कहा, उसके बिल्कुल विपरीत काम किया है।

इस तीखी टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सिन्हा ने निर्देश दिया कि अब 30 जुलाई को सभी पक्षों की उपस्थिति में दोबारा बैठक बुलाई जाए और उसका पूरा ब्योरा आठ अगस्त को हाई कोर्ट में पेश किया जाए। सचिव को निर्देश दिया गया है कि वे खुद रिपोर्ट दाखिल करें।

यह मामला केवल टॉलीवुड की आंतरिक राजनीति या प्रशासनिक लापरवाही का नहीं बल्कि न्यायिक आदेशों की अवहेलना से जुड़ा हुआ है, जिस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी तरह की मनमानी बर्दाश्त नहीं करेगा।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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