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संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत का ऐतिहासिक फैसला, स्वच्छ और सतत पर्यावरण को मिला मानवाधिकार का दर्जा

-जलवायु परिवर्तन से निपटने में लापरवाही को बताया अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन

हेग, 23 जुलाई (Udaipur Kiran) । संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष न्यायिक संस्था इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने बुधवार को जलवायु परिवर्तन को लेकर ऐतिहासिक परामर्शात्मक राय (एडवाइजरी ओपिनियन) जारी करते हुए कहा कि स्वच्छ, स्वस्थ और सतत पर्यावरण मानवाधिकार है, और यदि कोई राष्ट्र जलवायु संकट से निपटने में विफल रहता है तो यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जा सकता है।

कोर्ट के अध्यक्ष युजी इवसावा ने सुनवाई के दौरान कहा कि जलवायु प्रणाली की रक्षा के लिए उपयुक्त कार्रवाई करने में किसी राज्य की विफलता, अंतरराष्ट्रीय रूप से गलत कार्य हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार अन्य सभी मानवाधिकारों की नींव है।

130 से अधिक देशों का समर्थन, वानुअतु ने की थी पहल

इस केस की शुरुआत प्रशांत द्वीप राष्ट्र वानुअतु की अगुवाई में हुई थी, जिसे 130 से अधिक देशों का समर्थन प्राप्त हुआ। सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश, जिनमें अमेरिका और चीन जैसे प्रमुख कार्बन उत्सर्जक राष्ट्र भी शामिल हैं, इस मामले में पक्षकार थे।

जलवायु परिवर्तन को बताया अस्तित्व का खतरा

कोर्ट ने जलवायु परिवर्तन को तात्कालिक और अस्तित्वगत खतरा करार दिया। 500 से अधिक पृष्ठों में दर्ज इस परामर्श को बाध्यकारी नहीं माना जाता, लेकिन इसका वैश्विक कानूनी और नैतिक असर बेहद गहरा माना जा रहा है।

क्या होगा प्रभाव

इस ऐतिहासिक फैसले के जरिए अब भविष्य में देश एक-दूसरे के खिलाफ आईसीजे में जलवायु कार्रवाई की विफलता को लेकर मुकदमा दायर कर सकेंगे। यह परामर्श देशों की नीति निर्माण, राष्ट्रीय अदालतों में मुकदमों और जलवायु न्याय से जुड़े मामलों में महत्वपूर्ण कानूनी आधार बन सकता है। साथ ही, यह निर्णय सामान्य नागरिकों और संगठनों को भी जलवायु संरक्षण के लिए कानूनी अधिकार प्रदान करता है।

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(Udaipur Kiran) / आकाश कुमार राय

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