
– रविवार भोर में मनरी बजने के साथ होगा तीन दिवसीय मेले का समापन
मीरजापुर, 30 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । अहरौरा थाना क्षेत्र के जंगल महाल ग्राम पंचायत के बरही गांव में हर साल लगने वाला रहस्यमयी और ऐतिहासिक भूतों का बेचूबीर मेला गुरुवार से श्रद्धा और उत्साह के साथ शुरू हो गया है। हल्की बारिश और ठंडी हवाओं के बावजूद श्रद्धालुओं की भीड़ ने मौसम को मात दी। हजारों लोग बेचूबीर बाबा और बरहिया माई की चौरी पर पहुंचकर मत्था टेक रहे हैं, नारियल चढ़ा रहे हैं और “खेलने-हबुआने” की पारंपरिक रस्में निभा रहे हैं।
मेले के व्यवस्थापक रोशन लाल यादव ने बताया कि कार्तिक अष्टमी से शुरू होकर यह मेला कार्तिक एकादशी की भोर में ‘मनरी’ बजने के साथ समाप्त होता है। इस वर्ष रविवार, 2 नवम्बर को एकादशी पड़ने के कारण उसी दिन सुबह चार बजे मेले का समापन किया जाएगा।
भक्ति और रहस्य का संगम – क्या है मान्यता?
स्थानीय मान्यता के अनुसार, बेचूबीर बाबा की चौरी पर जो व्यक्ति भूत-प्रेत बाधा, संतान की समस्या या अन्य अलौकिक परेशानी से ग्रस्त होकर तीन बार दर्शन करने आता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। मेले के दौरान कई श्रद्धालु “हबुआने” (अवस्था बदलने) लगते हैं, जिन्हें ग्रामीण मानते हैं कि बाबा की शक्ति उन्हें प्रेतबाधा से मुक्ति दिला रही है।
कौन थे बेचूबीर बाबा?
बेचूबीर बाबा का वास्तविक नाम बेचू यादव था। वे गुलरिहवा गांव के निवासी थे, जो अब जरगो जलाशय में समा चुका है। लगभग तीन सौ वर्ष पहले बाबा बेचू यादव एक पहलवान और शिवभक्त साधक के रूप में बरही के जंगलों में रहकर तपस्या करते थे। जरूरतमंदों का झाड़-फूंक से उपचार करते थे। कथा है कि कार्तिक अष्टमी की रात जंगल में एक बाघ ने उन पर हमला किया, और लंबी लड़ाई के बाद कार्तिक एकादशी की भोर में उनकी मृत्यु हो गई। तभी से इस तिथि को उनकी स्मृति में मेला आयोजित किया जाता है।
बेचूबीर बाबा की चौरी से लगभग एक किलोमीटर पश्चिम स्थित बरहिया माई की चौरी को उनकी पत्नी माना जाता है। यहां भी उसी तिथि को पूजा और मेले का आयोजन होता है।
सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लगने वाले इस मेले को लेकर प्रशासन पूरी तरह सतर्क है। प्रभारी निरीक्षक सदानंद सिंह ने बताया कि मेले में पुलिस, पीएसी बल, महिला पुलिसकर्मी और अन्य सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की गई है। हर प्रवेश बिंदु पर चौकसी बढ़ाई गई है ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
(Udaipur Kiran) / गिरजा शंकर मिश्रा
