
गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने ब्लैक पीक चोटी को फतेह किया
ब्लैक पीक चोटी को फतेह करने वाला गुजवि बना पहला भारतीय विश्वविद्यालय
हिसार, 3 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । शिक्षक का कर्तव्य केवल किताबी ज्ञान देना नहीं,
बल्कि अपने विद्यार्थियों के सामने जीवन के हर पहलु से जुड़े बिंदुओं पर आगे बढ़कर राह
दिखाना है। शिक्षक को खुद पहले वो करना होता है, जो वह अपने विद्यार्थियों से उम्मीद
करता है। गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के शिक्षकों
ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जो कदाचित विश्व के किसी भी विश्वविद्यालय के शिक्षक
हासिल नहीं कर पाए। विश्वविद्यालय के डीन ऑफ कॉलेजिज प्रो. संजीव कुमार के नेतृत्व
में विश्वविद्यालय के शिक्षक दल ने उत्तर कांशी (उत्तराखंड) में स्थित ब्लैक पीक को
फतेह किया है।
कालानाग के नाम से चर्चित भयानक बर्फीली ऊंचाइंयों वाली ब्लैक पीक बांदरपुच्छ
पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है। 6387 मीटर की ऊंचाई वाली यह चोटी काले नाग के
फन जैसी दिखती है। 50-70 डिग्री तक की खड़ी बर्फीली ढलानों, गहरी दरारों (क्रेवास),
खतरनाक बर्फीली दिवारों (बर्गश्रुंड) और टूटते मोरेनों वाली इस चोटी को फतेह करना मौत
जैसी चुनौतियों से पार पाना है।
इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई यह उपलब्धि : प्रो. नरसी राम बिश्नोई
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने शुक्रवार काे कहा कि इस गौरवपूर्ण
उपलब्धि ने विश्वविद्यालय को इतिहास के ऐसे पन्नों में स्थान दे दिया है, जिसे न केवल
लंबे समय तक याद किया जाएगा, बल्कि इससे अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और विद्यार्थियों
को भी प्रेरणा मिलेगी। यह समूचे भारत व हरियाणा
के लिए गर्व का विषय है। साथ ही 50 वर्ष की उम्र में इस चोटी पर पहुंच कर शिक्षकों
ने जिस जज्बे का परिचय दिया है, उससे सिद्ध होता है कि जब संकल्प बड़ा हो तो उम्र मायने
नहीं रखती। प्रो. संजीव कुमार के साथ टीम मैनेजर राजेश तथा गुरु गोरक्षनाथ राजकीय महाविद्यालय,
हिसार के सहायक प्राध्यापक मनोज ने 19 सितंबर को देहरादून से इस चोटी पर सफर शुरु किया
था।
खतरनाक चुनौतियां और गजब का रोमांच रहा ट्रैकिंग के दौरान
प्रो. संजीव कुमार ने बताया कि मुसलाधार बारिश से सड़के टूटी पड़ी थी, जगह-जगह
भूस्खलन हुआ था। उफनने झरनों से कटे रास्तों को पार करना बेशक चुनौतिपूर्ण था, लेकिन
रोमांचक भी था। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में इस बार हुई भयंकर बारिश से मची तबाही
के निशान ब्लैक पीक के रास्ते पर भी साफ दिखाई दे रहे थे। एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंचने
के बाद चारों तरफ झरने और निर्मल धाराएं, बीच में रूंसारा ताल की अदभुत सुंदरता थकान
को मिटा रही थी। जब हरियाली खत्म हुई तो केवल ग्लेशियर और दरारें थी। ऑक्सीजन कम थी,
सांस फूलने लगी थी। सही मायने में ट्रैकिंग की असली चुनौती यहीं से शुरु हुई थी। रस्सियां
लगाना, रास्ता बनाना और खतरनाक चोटियों से गुजरना, हल्की सी चूक मौत के दर्शन करवा
सकती थी। गाइड दल के शेरपा गेंडुप, प्रशांत और सुदेब ने इन चुनौतियों से निपटने में
पवर्तारोही दल की सहायता की।
(Udaipur Kiran) / राजेश्वर
