शिमला, 10 सितंबर (Udaipur Kiran News) । हिमाचल प्रदेश में हर साल बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लगातार जन-धन का नुकसान हो रहा है। प्रदेश में बढ़ती इन आपदाओं के कारणों और बचाव के उपायों पर अब हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करेगा। इसके लिए विश्वविद्यालय ने “कैंपस टू कम्युनिटी” मिशन के तहत एक विशेष डिजास्टर सेंटर की स्थापना की है। इस मिशन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मजबूती देने के लिए हिमाचल विश्वविद्यालय ने इटली के पडोवा विश्वविद्यालय और नार्वे के नॉर्वेजियन जियोटेक्निकल इंस्टीट्यूट के साथ एमओयू साइन किए हैं।
विश्वविद्यालय ने प्रारंभिक चरण में चार जिलों मंडी, कुल्लू, कांगड़ा और शिमला को अध्ययन क्षेत्र चुना है। यहां आपदा के कारणों, अर्ली वार्निंग सिस्टम और बचाव संबंधी पहलुओं पर विस्तृत शोध होगा।
पत्रकार वार्ता में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. महावीर सिंह ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं। “जहां कल्पना भी नहीं कर सकते, वहां आपदाएं घटित हो रही हैं। यह प्रदेश के लिए गंभीर चिंता का विषय है। विश्वविद्यालय इस पर गहराई से अध्ययन कर इसे जमीनी स्तर तक पहुंचाएगा।” उन्होंने बताया कि इस विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला भी आयोजित की जाएगी, जिसके सुझावों को व्यवहारिक स्तर पर लागू किया जाएगा।
कुलपति ने कहा कि गांवों के बुजुर्गों से भी पारंपरिक अनुभव और सुझाव लिए जाएंगे। साथ ही, स्कूल और कॉलेज स्तर पर आपदा जागरूकता बढ़ाने के लिए क्रेडिट आधारित कोर्स शुरू किए जाएंगे। सेंटर का विशेष फोकस अर्ली वार्निंग सिस्टम पर रहेगा और इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक की मदद से अधिक काम किया जाएगा।
हिमालयन सेंटर फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन एंड रेजिलिएंस के उपनिदेशक डॉ. महेश शर्मा ने बताया कि सेंटर इस समय शिमला, धर्मशाला, कुल्लू और मंडी की निगरानी कर रहा है। इन शहरों में पिछले दस वर्षों में हुए भू-धंसाव और आपदाओं का डाटा इकट्ठा किया जा रहा है, ताकि आपदा के कारणों और भविष्य की संभावनाओं का आकलन किया जा सके।
सहयोगी संस्था इटली के पडोवा विश्वविद्यालय के लैंडस्लाइड साइंटिस्ट प्रो. संसार राज मीणा ने कहा कि अध्ययन में एडवांस्ड मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ग्लोबल सैटेलाइट डाटा का इस्तेमाल किया जाएगा। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक जानकारी को स्थानीय समुदाय से जोड़कर ऐसा सिस्टम तैयार किया जाएगा, जिससे आपदा का समय पर पता चल सके और उसके प्रभाव को कम किया जा सके।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
